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४६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
की आराधना करो तो तत्काल उत्तर मिलता है कि समय नहीं है | मुझे भी कई बार ऐसा उत्तर सुनने को मिला है । मैंने एक व्यक्ति से कहा--और सब काम करने को समय है, नींद लेने को भी समय है, खाने को भी समय है, शौच जाने का भी समय है, बातचीत के लिए भी समय है, प्रत्येक काम के लिए समय है। ये सब काम की बातें हैं । निकम्मा काम तो है धर्म की आराधना करना । उसे करने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है।
एक रोगी ने कहा—डॉ० साहब ! आप फीस बहुत लेते हैं। डॉक्टर ने कहा—ठीक बात है, पर मुझे लगता है कि तुम जीवन का मूल्य कम आंकते हो । जीवन के सामने फीस कुछ भी नहीं है ।
धर्म की आराधना के सामने समय का कोई मूल्य नहीं है । किन्तु हमने अब तक यही मान रखा है कि जीवन में और सब काम जरूरी, अनिवार्य और आवश्यक हैं, केवल अपने व्यक्तित्व का निर्माण सबसे निकम्मा काम है । उसके लिए हमारे पास कोई समय नहीं है | जब तक यह दृष्टिकोण नहीं बदलेगा, व्यक्ति अपने जीवन के बारे में नहीं समझ पाएगा, तब तक सही मूल्यांकन नहीं होगा और प्राण का आध्यात्मिकीकरण भी नहीं होगा । जिस दिन प्राण को आध्यात्मिक बनाने की प्रक्रिया हमारी समझ में आ जाएगी, हम उसका अभ्यास शुरू करेंगे, प्राणशक्ति का संग्रह शुरू करेंगे और फिर उसका जीवन के ऊर्ध्वगमन में, ऊंचे-ऊंचे स्थानों के विकास में उपयोग करेंगे, नाभि से ऊपर के केन्द्रों को विकसित करने में उस शक्ति को लगाएंगे तो एक अनुपम आनन्द, निर्मल चेतना, शक्तिशाली प्रज्ञा हमारे व्यक्तित्व में जागेगी और ऐसे व्यक्तित्व तैयार होंगे जिनकी आज के इस कलह-प्रधान, क्रोध-प्रधान, अधैर्य-प्रधान मानवीय सभ्यता में सबसे ज्यादा अपेक्षा है |
आज के युग में निरन्तर हिंसा, मार-काट, हत्याएं, आत्महत्याएं और नाना अपराधों का विकास हो रहा है, नींद कम होती जा रही है, स्मरणशक्ति कम होती जा रही है, आंतरिक शक्तियां और सहिष्णुता की शक्ति कम होती जा रही है, धैर्य का लोप होता जा रहा है | इस प्रकार के युग में यदि समस्याओं का समाधान पाना है तो प्राणशक्ति का विकास और उसका आध्यात्मिकीकरण हमारे लिए नितांत अनिवार्य है। .
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