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प्राणशक्ति का आध्यात्मिकीकरण | ४५
पहली शर्त है श्वास लेने का सही ज्ञान होना जरूरी है । जब श्वास लेने का सही ज्ञान होता है तो मन के एकाग्रता की समस्या भी हल हो जाती है। सभी क्षेत्र, सभी काल और सभी प्रकार के व्यक्तियों की एक ही शिकायत है कि मन टिकता ही नहीं । कुछ भी करने बैठते हैं, मन घूमने लग जाता है । प्रवृत्ति चाहे सांसारिक हो या धार्मिक, मन चक्कर काटता रहता है । एक बिन्दु पर एकाग्र होता ही नहीं।
इस विषय में हमारी धारणा गलत है | मन बेचारा घूमता ही नहीं, कहीं जाता ही नहीं । हमने विपरीत मान रखा है कि मन घूमता रहता है । हमें कहना यह चाहिए कि मन बिलकुल घूमता ही नहीं । मन तो टिका हुआ है। दोनों सचाइयों में इतनी ही बात समझनी होगी कि जिस व्यक्ति ने श्वास को ठीक लेना नहीं जाना वह व्यक्ति कहेगा कि मन टिकता ही नहीं और जिसने श्वास को ठीक लेना सीख लिया वह कहेगा कि मन कहीं जाता ही नहीं । दोनों का कहना सच है, कोई झूठा नहीं । अनेकान्त की भाषा है, अनेकान्त का दृष्टिकोण है, किसी को झूठा नहीं कह सकते । मन नहीं घूमता, यह सचाई है, मन घूमता है यह भी सचाई है । पर इस सचाई के आधार दो हैं—जिसका श्वास चंचल है, छोटा है, उसका मन नहीं टिकेगा और जिसका श्वास लम्बा है और लम्बा हो गया है, उसका मन कहीं भटकेगा नहीं।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है जिस व्यक्ति ने मन को एकाग्र करना सीख लिया, श्वास का संयम करना सीख लिया, वह फिर जहां चाहे वहां प्राण-ऊर्जा का उपयोग कर सकता है। __ कोई साधक चाहे कि भूकुटि के बीच प्राण-ऊर्जा को टिकाना है तो उसका मन भी टिक जाएगा, प्राण-ऊर्जा भी टिक जाएगी और वहां पूरी प्रक्रिया शुरू हो जायेगी, अपने आप वहां का चैतन्य केन्द्र सक्रिय हो जायेगा और अपनी शक्ति का विस्फोट करने लग जाएगा । . __ यह प्राण की प्रक्रिया, प्राण-उर्जा के विकास की प्रक्रिया, प्राण का आध्यात्मिकीकरण, बिजली को आध्यात्मिक बना देना, यह साधना का रहस्य है। शरीर को चलाना, व्यापार को चलाना, काम-धंधों को चलाना—इन सबमें बिजली खर्च होती है । केवल अध्यात्म में बिजली खर्च नहीं होती । साधुओं को इस बात का बहुत अनुभव हैं । जब किसी व्यक्ति को कहते हैं कि धर्म
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