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४४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
ऊर्जा का न रखना, उस ऊर्जा को ऊपर के केन्द्रों में ले जाना । यह आधत्मिकीकरण की प्रक्रिया है । यह कैसे होगा, पूछा जा सकता है । कैसे संभव होगा कि नीचे के केन्द्र तो न जागें और ऊपर के केन्द्र जाग जाएं । यह बहुत सरल प्रक्रिया है | इसे हम समझें ।
ऊर्जा के ऊर्ध्वकरण के दो मुख्य साधन हैं : १. श्वास लेने की समुचित प्रक्रिया का अभ्यास २. चित्त को लम्बे समय तक एक बिन्दु पर टिकाए रखने का अभ्यास ।
बुरा नहीं मानेंगे, आदमी बूढ़ा हो जाने पर भी श्वास लेना नहीं जानता। कभी-कभी ऐसा होता है कि बेटा दस वर्ष का होता है, पोता बीस वर्ष का हो जाता है और दादा पालने में ही झूलता है । अजीब-सी बात लगती है, पर ऐसा होता है । बूढ़ा आदमी पालने में ही झूलता है, वह श्वास लेना भी नहीं जानता।
प्रेक्षाध्यान के प्रति जो एक रुचि जागी है लोगों में, उसका एक कारण यह है कि जो व्यक्ति प्रेक्षाध्यान करने आता है, वह सबसे पहले श्वास लेना सीख लेता है । हम शिविरार्थियों को सबसे पहले यही पूछते हैं कि आप श्वास लेना जानते हैं या नहीं जानते ? लोग अचम्भा करते हैं कि यह भी कोई पूछने की बात होती है ? बड़ा अचम्भा होता है । वे कहते हैं—हम श्वास तो लेते ही हैं । यह भी कोई जानने और पढ़ने की बात है ? तब हम पुनः पूछते हैं—सही ढंग से श्वास लेना जानते हैं या नहीं? वे कहते हैं—श्वास लेने में सही और गलत क्या ? प्रेक्षा की प्रक्रिया में श्वास की भी एक कसौटी है । वह यह है कि श्वास लेते समय नाभि के आस-पास की मांसपेशियां फूलती हैं तो श्वास ठीक आता है । और यदि श्वास लेते समय केवल फेफड़ा फूलता है तो श्वास गलत आता है । बहुत कम लोग सही श्वास लेना जानते हैं । वे छोटी सांस लेते हैं। कभी सांस लेने का अभ्यास ही नहीं किया, सीखा ही नहीं, फेफड़ा भी नहीं फूलता तो मांसपेशियां कैसे फूलेंगी ? वहां तक सांस पहुंचेगा कैसे ? नहीं पहुंचेगा । जो सांस लेना ठीक ढंग से नहीं जानता, वह प्राण को विकसित नहीं कर सकता । प्राण की शक्ति सांस के साथ नथुनों के द्वारा भीतर जाती है और फिर नथुनों के द्वारा ही बाहर आती है | जो सांस को ठीक लेना नहीं जानता, वह प्राण का संग्रह कर नहीं सकता ।
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