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प्राणशक्ति का आध्यात्मिकीकरण | ४३
काम नहीं हो सकता | बड़े काम के लिए, बड़े विकास के लिए, बड़ी शक्ति की जरूरत होती है । उसके लिए शक्ति बचाने की, संग्रह करने की, भंडार को भरने की जरूरत होती है | ब्रह्मचर्य का सिद्धान्त इसीलिए प्रतिपादित किया कि व्यक्ति शक्ति को खर्च न करे | कुछ लोग बहुत उलझ जाते हैं । आज के डॉक्टर भी उलझ जाते हैं । वे कहते हैं-वीर्य का कोई मूल्य नहीं हमारी दृष्टि से । वीर्य का मूल्य नहीं होगा उनकी दृष्टि में, उन्होंने उसका रासायनिक विश्लेषण किया होगा । किन्तु इस बात का तो मूल्य है कि प्रत्येक अब्रह्मचर्य की घटना के साथ बिजली भी खर्च होती है । बिजली बाहर जाती है। बिजली खर्च होती है और आदमी बिजली से शून्य होता है।
सबसे बड़ी सुरक्षा करनी है—प्राण विद्युत् की । हमारी बिजली कम खर्च हो, उसका संग्रह रख सकें, उसका बड़ी दिशाओं में उपयोग कर सकें। विद्युत के बिना चेतना के केन्द्रों को सक्रिय नहीं किया जा सकता और चेतना के केन्द्रों को सक्रिय किये बिना कोई भी विशिष्टता प्राप्त नहीं की जा सकती। __जयंति ने भगवान् महावीर से पूछा---'भगवन् ! जीवों का सोना अच्छा है या जागना अच्छा है ?'
भगवान् महावीर ने उत्तर दिया- 'सोना भी अच्छा है और जागना भी अच्छा है।
"भंते ! दोनों बातें कैसे ?'
'जो लोग झगड़ालू हैं, हिंसक हैं, झूठ बोलने वाले हैं, चोरी करने वाले हैं, पाप का आचरण करने वाले हैं वैसे लोगों का सोते रहना अच्छा है जो अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, ध्यान आदि द्वारा सदाचार में रहने वाले हैं उनका जागना अच्छा है। ___ हमारे शरीर में भी दोनों प्रकार की बातें मिलती हैं । नाभि के नीचे जो चेतना के केन्द्र हैं, उनका सोते रहना अच्छा है और नाभि के ऊपर सिर तक जो चेतना के केन्द्र हैं, उनका जागना अच्छा है । किन्हीं का सोना अच्छा है और किन्हीं का जागना अच्छा है । हमारे शरीर में दोनों बातें हैं । हमारे कुछ केन्द्र सोये रहें और कछ केन्द्र जागते रहें ।
प्राण की ऊर्जा को संगृहीत करना और उस ऊर्जा का आध्यात्मिकीकरण करना, यह अपेक्षित है । आध्यात्मिकीकरण का अर्थ है—नीचे के केन्द्रों में
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