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४० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
हस्तिः स्थूलवपुः स चांकुशवशः किं हस्तिमात्रोंकुश: ? दीपे प्रज्वलिते विनश्यति तमः किं दीपमात्रं तमः ? वज्रेणाऽपि हताः पतन्ति गिरयः किं वज्रमात्रो गिरिः । तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थूलेषु कः प्रत्ययः ?
हाथी कितना मोटा होता है किन्तु छोटे से अंकुश के अधीन होता है । छोटा-सा अंकुश जब कुंभस्थल पर लगता है, हाथी काबू में आ जाता है । क्या हाथी अंकुश जितना ही था । घनघोर अंधकार होता है, एक दीया जलता है, प्रकाश हो जाता है, अंधेरा भाग जाता है। क्या दीए जितना ही अंधेरा था ? दीए की पतली सी बाती जलती है—अंधेरा हट जाता है, नामोनिशान भी मिट जाता है । पर्वत कितना विशालकाय, कितना लम्बा-चौड़ा, कितना ऊंचा होता है । चट्टानें ही चट्टानें, पत्थर ही पत्थर, बड़ा भायानक होता है । वज्र छोटा-सा होता है । वह जब आकर गिरता है तो पहाड़ चूर-चूर हो जाता है । क्या पर्वत वज्र जितना ही है ? कवि कहता है जिसमें तेज है, वह बलवान होता है । तेज को देखो, स्थूलता को मत देखो । स्थूलता में विश्वास मत करो, नहीं तो धोखा खा जाओगे ।
आज के वैज्ञानिक युग ने इस सचाई को बहुत पकड़ लिया । उसमें स्थूल की शक्ति निरस्त हो गयी है। आज का युग परमाणु का युग है । आज के युग में जीने वाला आदमी परमाणु की शक्ति से बहुत परिचित है । वह परमाणु शक्ति को जान चुका है। वह परख चुका है कि सूक्ष्म में कितनी ताकत होती है । जब अणुबमों का विस्फोट हुआ और होता है तब आदमी उस सूक्ष्म की शक्ति का साक्षात् करता है ।
प्राण की शक्ति जैसे- जैसे सूक्ष्म होती चली जाती है वैसे-वैसे उसकी क्षमता और कार्यशक्ति भी बढ़ती चली जाती है । ध्यान की साधना प्राण की शक्ति को सूक्ष्म करने की साधना है । एक आदमी एक मिनट में १५, १६, १७ श्वास लेता है और तनाव की अवस्था होने पर २०, २५, ५० तक भी संख्या चली जाती है । प्राण की शक्ति स्थूल हो जाती है । इसका अर्थ यह हुआ कि श्वास की संख्या जितनी बढ़ती है शक्ति, उतनी ही खर्च होती चली जाती है। श्वास की संख्या जितनी कम होती है, उतनी ही शक्ति बढ़ती चली जाती है ।
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