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________________ प्राणशक्ति का आध्यात्मिकीकरण | ३९ दुःख दोनों विद्युत् के कार्य हैं । हमारी प्राणशक्ति जो निरंतर हमारे जीवन को संचालित करती है, वह पैदा होती है और खपती रहती है। उसकी उपज भी है और खपत भी है। हर कोशिका बिजली को पैदा करती है और काम चलाती है । बिजली खर्च हो जाती है । उससे कोई बड़ी बात नहीं होती । रोटी पकानी है, चूल्हा जलाया, रोटी पक गई । चूल्हा बुझ गया । कोई बड़ी बात नहीं है । बड़ा काम करने के लिए बड़ी शक्ति चाहिए | बड़ा काम करने के लिए बड़ी प्राणशक्ति चाहिए, प्राणशक्ति का विकास चाहिए । हम प्राणशक्ति को बढ़ा सकें, तब कोई नया काम हो सकता है, नयी बात बन सकती है। ज्ञान का विकास तब होता है जब प्राणशक्ति बढ़ जाती है । एक विशिष्ट ज्ञानी, जिसे परिभाषा में चतुर्दशपूर्वी कहा जाता है, वह ४८ मिनट के भीतर इतनी बड़ी ज्ञानराशि का अर्जन कर लेता है, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते । वह इतनी बड़ी ज्ञानराशि है कि यदि पुस्तकों में लिखा जाए तो लाखों पुस्तकों में भी न समाए । वे इतनी बड़ी ज्ञान की राशि को केवल कुछ मिनटों में पुनरावर्तन कर लेते हैं । प्रश्न हुआ कि यह कैसे संभव हो सकता है | उत्तर दिया गया कि प्राणशक्ति की विशिष्टता के कारण ऐसा संभव हो सकता है । उन्हें सूक्ष्म प्राणशक्ति उपलब्ध हो जाती है । प्राण की शक्ति जैसे-जैसे सूक्ष्म होती है, उसकी शक्ति बढ़ती जाती है | जो गणित एक आदमी अपने पूरे जीवन में कर सकता वह गणित कम्प्यूटर कुछ क्षणों में कर लेता है । चतुर्दशपूर्वी तो बड़ा कम्प्यूटर है। सबको इतना जल्दी दोहरा लेता है कि हर आदमी तो कर ही नहीं सकता । पर यह सारा होता है प्राणशक्ति के द्वारा । वह प्राणशक्ति को इतना विकसित कर लेता है कि उसमें अपूर्व शक्ति पैदा हो जाती है। आचार्य भद्रबाहु ने महाप्राण ध्यान की साधना की । बारह वर्ष लगते हैं इस ध्यान की साधना में । उसमें प्राण को सूक्ष्म करने की प्रक्रिया चलती है | प्राण को जितना सूक्ष्म किया जाए उसकी उतनी शक्ति बढ़ती चली जाती है । प्राण जितना स्थूल होगा शक्ति उतनी ही कम होगी । संस्कृत कवि ने कहा है--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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