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३८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता मैं रात को कसर निकाल लेता हूं रात को बहुत पढ़ता हूं | आज रात को इतनी देर तक पढ़ता रहा कि बिजली कब चली गई, मुझे पता ही नहीं चला |
ऐसे पढ़ने की चर्चा मैं नहीं कर रहा हूं कि बिजली चली जाए और आदमी को पता ही न चले । वास्तव में प्रकाश हमारे जीवन की एक बहुमूल्य थाती है । और हमें बहुत बड़ी शक्ति उपलब्ध है प्रकाश के रूप में । वह प्रकाश बाहर का प्रकाश नहीं, वह प्रकाश हमारे भीतर का प्रकाश है । बाहर की बिजली से लोग बहुत परिचित हैं । आश्चर्य की बात है, भीतर की बिजली से लोग कम परिचित हैं । जानते हुए भी शायद नहीं जानते ।
दस प्राण हैं, प्राण की शक्ति है—-इस बात को रटने वाले भी शायद प्राण की शक्ति से परिचित नहीं हैं । आख से देखते हैं, कान से सुनते हैं । शरीर सक्रिय है, काम करता है । यह सक्रियता कहां से आती है ? आंख क्यों देखती है ? प्राण की शक्ति काम कर रही है इसलिए आंख देखती है। प्राण की शक्ति काम करना बंद कर दे, आंख भी देखना बंद कर देगी । कान से इसलिए सुनते हैं कि प्राण की शक्ति काम कर रही है । प्राण की शक्ति काम करना बंद कर दे, कान की सुनने की शक्ति भी गायब हो जाएगी। पांचों इन्द्रियों की शक्तियां, बोलने की शक्ति, सोचने की शक्ति, चलने-फिरने की शक्ति, श्वास लेने की शक्ति और जीने की शक्तेि—ये सारी शक्तियां एक ही शक्ति के विभिन्न रूप हैं । मूल है प्राणशक्ति और प्राणशक्ति जितने काम करती हैं, उनके अलग-अलग नाम हो जाते हैं । ये नाम सारे स्थान विशेष के आधार पर होने वाले नाम हैं । मूलतः एक है प्राणशक्ति । यदि शक्ति नहीं है तो चेतना का उपयोग नहीं होता । ज्ञान है और शक्ति नहीं है तो ज्ञान का कोई उपयोग नहीं होगा । आनंद है और शक्ति नहीं है तो आनंद का कोई उपयोग नहीं होगा। आनंद का उपयोग, ज्ञान का उपयोग, दर्शन का उपयोग या अन्य किसी का भी उपयोग करना है, उसके पीछे शक्ति जरूर रहेगी। ऐसा नहीं होता कि चेतना का उपयोग हुआ और शक्ति नहीं रही । कभी नहीं होगा । दर्शन का उपयोग हुआ, आनंद का उपयोग हुआ, पर शक्ति नहीं थी, ऐसा कभी नहीं हुआ । सुख का अनुभव तो वास्तव में शक्ति का ही अनुभव है । बिजली का ही यह अनुभव है । एक प्रकार की विद्युत् हमारे काम में आती है, हमें सुख का अनुभव होता है | सुख और
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