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प्राणशक्ति का आध्यात्मिकीकरण
विद्युत का युग है। प्रत्येक आदमी विद्युत् से परिचित है और विद्युत के चमत्कार से भी परिचित है। बिजली का प्रयोग आज होता है, पर आदमी अनादिकाल से प्रकाश से परिचित है । वह प्रकाश और अंधकार के भेद को जानता रहा है ।
हम आंख से देखते हैं। आंख से देखते हैं, यह ठीक है, पर वास्तव में प्रकाश से देखते हैं । दिन में कमरे में गया, सब कुछ साफ-साफ था । सब दिखाई दे रहा था । रात को गया, तब अंधेरा था । कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । सोचा क्या हो गया ? सभी चीजें कहां गायब ! कुछ भी दिखाई नहीं देता । दीया जलाया, फिर कमरे में गया तो सब कुछ दीखने लग गया ।
भारतीय दर्शन में अभेद और भेद की चर्चा बहुत आती है । अंधकार में अभेद बहुत है, कोई भेद नहीं है । सब समान हो जाते हैं । गोरे - काले का भेद नहीं है। छोटे-बड़े का, अच्छे-बुरे का भेद नहीं होता, वस्तु-अवस्तु का भी भेद नहीं होता, सब कुछ समान हो जाता है । जैसे ही प्रकाश आता है, यथार्थ अपने रूप में आ जाता है । सब जैसे हैं वैसे दिखाई देने लग जाते हैं । प्रकाश एक बहुत बड़ा चमत्कार है हमारी दुनिया का । और प्रकाश होता है तभी सब कुछ ठीक-ठीक दिखाई देता है ।
मैं यथार्थ में प्रकाश की चर्चा कर रहा हूं । प्रकाश के आभास की चर्चा कर रहा हूं | प्रकाश के नाम की चर्चा कर रहा हूं । एक विद्यार्थी कम पढ़ता था । पिता ने कहा- तुम बहुत कम पढ़ते हो । अधिक पढ़ना चाहिए। उसने मैं बहुत पढ़ता हूं । पिता ने पूछा- अरे ! कब पढ़ते हो ? दिनभर इधर-उधर घूमते हो, गप्पें हांकते हो, कब पढ़ते हो ? वह बोला- पिताजी !
कहा
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