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३६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता प्रतिरोधात्मक शक्ति का कार्य समाप्त हो चुका, जिसमें वह शक्ति नहीं है, दवाइयां लेते जाओ, वे कोई काम नहीं करेंगी । मूल बात है प्रतिरोधात्मक शक्ति और वह है प्राण की शक्ति, श्वास की शक्ति ।
प्राणशक्ति का चमत्कार इससे बड़ा क्या होगा कि प्राण के द्वारा ही आदमी जीता है । यह जीना सबसे बड़ा चमत्कार है । कीटाणु बीमारी पैदा करते हैं, ऐसा डॉक्टर लोग मानते हैं । ऐलोपैथिक साइंस का मत है कि बीमारी कीटाणुओं से पैदा होती है | क्या कीटाणुओं से कोई खाली है दुनिया का भाग ? कोई हिस्सा खाली नहीं है । सब जगह कीटाणु भरे पड़े हैं और जब प्रतिरोधात्मक शक्ति तीव्र होती है तो कीटाणु कुछ भी नहीं कर पाते । आते हैं, चले जाते हैं, अड्डा जमाकर नहीं रह पाते । खत्म हो जाते हैं, मर जाते हैं । कई बार देखा है कि व्यक्ति की प्राणशक्ति इतनी प्रबल होती है कि सांप काटे तो सांप मर जाए, बिच्छु काटे तो बिच्छु मर जाए । उसे कुछ भी नहीं होता । इसलिए कहा जाता है कि आदमी इतना जहरीला होता है कि उसे खाने वाला मर जाता है । .
प्रश्न है प्राण की शक्ति का । मैंने प्राण की शक्ति की चर्चा की है । अब इस विद्युत् को कैसे बदला जाए, यह एक प्रश्न है ? धर्म की पूरी प्रक्रिया, साधना की पूरी प्रक्रिया, अध्यात्मवाद, रहस्यवाद—ये सारे उस बिजली के बदलने की पद्धति बतलाते हैं । कैसे बदला जाए? किस प्रकार बदला जाए? किस प्रकार का आचार, किस प्रकार का व्यवहार, किस प्रकार का चिन्तन, किस प्रकार का दर्शन, जिससे वह बिजली, प्राण की धारा बदले और प्राण की धारा चेतना के जागरण में सहयोगी बने, इसकी फिर कभी चर्चा होगी ।
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