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विद्युत् का चमत्कार / ३५ है, वह वहीं का वहीं पड़ा है, किन्तु बिजली नीचे चली गई और जो श्रद्धेय था वह अपराधी बन गया ।
विज्ञान की भाषा में एड्रीनल ग्रन्थि अधिक सक्रिय हो गई, पुरोहित चोर बन गया, अपराधी बन गया । आवश्यकता इस बात की है कि ज्ञान और विद्युत् दोनों साथ-साथ रहें । ज्ञान ऊपर रहता है और बिजली नीचे जाती है तो ज्ञान भी लज्जित होता है और आदमी अपराधी बन जाता है । ज्ञान का मूल्य तभी है कि ज्ञान और प्राण -- दोनों साथ रहें, ज्ञान और प्राण का योग बराबर बना रहे ।
मैं तो मानता हूं, यह शरीर, शरीर में श्वास और श्वास से जुड़ा हुआ प्राण-से बड़ा कोई चमत्कार नहीं है। श्वास कितना बड़ा चमत्कार है । चलता है तो आदमी जी जाता है और बैठता है तो आदमी बैठ जाता है । कितना बड़ा चमत्कार है ! जिसने प्राणशास्त्र को पढ़ा है वह जानता है कि श्वास कितना बड़ा चमत्कार है और उसके द्वारा कितने बड़े चमत्कार घटित होते. हैं । ज्वर हुआ, श्वास को बदला, ज्वर मिट गया। सिरदर्द हुआ, श्वास को बदला, दर्द मिट गया । श्वास के द्वारा कितने परिवर्तन होते हैं । आपको यह भरोसा है कि आदमी बीमार है, दवाई लेता है, वह स्वस्थ हो जाता है । अगर दवाई से आदमी ठीक होता तो आज कोई मरता नहीं । सब अमर हो जाते । दवा तो सुलभ हैं। पहले ठीक हुआ तो क्या मरते समय दवा की कमी थी ? मरते समय भी तो दवा पास में थी और बहुत लोग तो दवा लेतेलेते ही मरते हैं ।
एक व्यक्ति को अचानक दिल का दौरा पड़ गया। उधर तो ऑक्सीजन चढ़ाया जा रहा है, इधर इंजेक्शन लग रहा है और उधर बत्ती बुझ रही है । तीनों साथ-साथ । कोई भी नहीं मरता यदि दवा से जिन्दा रहता । पर मर जाते हैं । कितनी भी दवाइयां हों, प्राण की विद्युत् जब तक शक्तिशाली होती है तब तक ओषधि काम करती है। दवा तो एक सहारा मात्र है । यदि प्राणविद्युत् समाप्त हो जाती है तो फिर दवाइयों का ढेर भी लगा दिया जाए, शरीर को दवाइयों से ढंक दें तो भी कोई असर होने वाला नहीं है। दवाई मूल नहीं है, मूल बात है प्राण की शक्ति । वह मूल होती है, तभी आदमी जीता है, नहीं तो नहीं जीता, कभी नहीं जीता। डॉक्टर लोग भी कहते हैं कि जिसकी
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