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________________ विद्युत् का चमत्कार | ३३ विशेष केन्द्र हैं कुछ नाभि के नीचे और कुछ नाभि के ऊपर । वे चैतन्यकेन्द्र जब विद्युत् के द्वारा सक्रिय होते हैं तो अपना काम शुरू करते हैं | हमारी बिजली जब नाभि के आस-पास आती है, नीचे आती है तो नीचे के केन्द्र जागते हैं, बुरी वृत्तियां सताने लगती हैं और वे केन्द्र यदि ज्यादा समय के लिए सक्रिय रहते हैं तो आदमी बुरा बन जाता है | यह बिजली जब ऊपर की ओर जाती है, ऊर्ध्वगति करती है; हृदय, कण्ठ,नाक, आंखें, कान, भृकुटि, ललाट का मध्य भाग, सिर का मध्यभाग-इन स्थानों में ऊपर की ओर चली जाती है तो सारी वृत्तियां बदल जाती हैं । मनुष्य महान् बनता है, बड़ा बनता है, परोपकारी बनता है, सदाचारी बनता है, परमार्थवर्ती बनता है, शक्तिसम्पन्न एवं आचरण-संपन्न होता है । वह उदात्त से उदात्ततम बनता चला जाता है | यह सारा परिवर्तन विद्युत् के ऊर्ध्वगमन होने का चमत्कार है | कितना बड़ा चमत्कार है ! एक डाकू संत बन जाता है तो क्या यह चमत्कार नहीं है ? आश्चर्य होता है कि डाकू संत कैसे बन गया और संत डाकू बन जाता है, तो यह भी बहुत बड़ा आश्चर्य है | यह भी बिजली के परिवर्तन से होने वाला चमत्कार है । जिसकी विद्युत् नीचे से ऊपर चली गयी वह डाकू सन्त बन गया । जिसकी बिजली ऊपर से नीचे आ गई, वह सन्त डाक बन गया । एक बार पुरोहित देवमित्र के मन में एक भावना जागी | उसने सोचा राजा ब्रह्मदत्त मेरा बहुत बड़ा सम्मान करता है । मुझे बहुत श्रद्धा की दृष्टि से देखता है | क्या कारण है ? क्या यह मेरे ज्ञान का सम्मान है ? या मेरे सदाचार का सम्मान है ? किसका सम्मान है, मुझे परीक्षा करनी चाहिए । एक दिन राजसभा में बैठा था । ज्ञान की चर्चा हो रही थी । गोष्ठी सम्पन्न हुई, सब लोग जाने लगे | पुरोहित देवमित्र भी जाने लगा । जाते समय बीच में राजकोष आया और उसने एक सिक्का उठा लिया । कोषाध्यक्ष ने देख लिया । उसने सोचा देवमित्र जैसा महान् व्यक्ति सिक्का उठाता है तो कोई विशेष प्रयोजन है । आज सम्भव है जल्दी में नहीं बताया है, बाद में बता देगा । दूसरे दिन भी यही घटना घटी। राजसभा से जाते समय देवमित्र ने फिर एक सिक्का उठा लिया । कोषाध्यक्ष अर्थ नहीं समझ सका । पर कुछ भी नहीं बोला । तीसरे दिन देवमित्र ने मुट्ठी भर सिक्के उठा लिये । कोषाध्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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