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________________ ३० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता कर्मचारी भी जीवन में पूरी नहीं कर सकते । मस्तिष्क की रचना बहुत विचित्र है । कोई वैज्ञानिक हमारे मस्तिष्क जैसे सूक्ष्म अवयवों का कम्प्यूटर बनाना चाहे तो आज की पूरी पृथ्वी भर जाए । इससे भी शायद बड़ा होगा । एक अंगुली के हिलने में कितनी क्रिया होती है, हम समझ ही नहीं पाते । कायोत्सर्ग का मूल्य समझ में नहीं आता किन्तु शरीर की क्रिया को जानता है, वह व्यक्ति समझ सकता है कि कायोत्सर्ग कितना मूल्यवान है, कायगुप्ति का कितना मूल्य है ? शरीर को स्थिर करने का कितना मूल्य है | हम इसको इस संदर्भ में समझें कि एक अंगुली हिलती है, इसका मतलब है मन की शक्ति खर्च होती है, चित्त की शक्ति खर्च होती है और पूरे शरीर में जो काम करने वाली विद्युत् है, ऊर्जा है, प्राणशक्ति है, वह खर्च होती. है । कायोत्सर्ग करने का अर्थ होता है कि बिजली खर्च नहीं होती, मन की शक्ति खर्च नहीं होती, शरीर की शक्ति एवं मस्तिष्क की शक्ति भी खर्च नहीं होती। सब भंडार में रिजर्व रह जाती है । हम जब चाहें उसे काम में ले सकते हैं। ___यहां इतने बल्ब लगे हैं, वे प्रकाश दे रहे हैं, चारों तरफ बिजली का प्रकाश दिखाई दे रहा है । आज अच्छा एक अवसर मिला कि प्रकाश है । बहुत बार ऐसा होता है कि बल्ब तो लगे रहते हैं किन्तु प्रकाश गायब हो जाता है | हम शरीर को देखते हैं, शरीर की भी यही हालत है । शरीर पड़ा है, आंखें, कान, नाक, पूरे-के-पूरे अवयव हैं, किन्तु बिजली गायब हो गई। सारे बल्ब पड़े हैं किन्तु प्रकाश नहीं । क्यों ? बहुत बड़ा चमत्कार है । एक बटन दबा और प्रकाश फैल गया । बात समझ में भी नहीं आती, एक साथ प्रकाश कैसे होता है ? ___ पढ़ा होगा आपने, कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं कि चिता में जलाने के लिए शव को लिटा दिया, वह बीच में ही खड़ा हो गया । सब भाग जाते हैं । कहते हैं कि भूत हो गया । पोस्टमार्टम के लिए रोगी को सुलाया गया और डॉक्टर पोस्टमार्टम करने बैठा । अस्त्र लगाया, पहला अस्त्र लगा, वह खड़ा हो गया । सभी कर्मचारी भाग खड़े हुए, डॉक्टर भी इतना भयभीत हुआ कि जो मरा हुआ था वह तो खड़ा हो गया और डॉक्टर मर गया । आपको आश्चर्य होगा कि यह कैसे हो सकता है ? बिजली गायब हो गई थी, कहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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