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विद्युत् का चमत्कार
हम जिससे परिचित हो जाते हैं, उसे खूब पहचान नहीं पाते । कभी-कभी जो घटना घटती है, उसको चमत्कार मान लेते हैं और रोज जो घटना घटती है, उसे चमत्कार नहीं मानते । कभी-कभी होने वाली को बीमारी मान लेते हैं, रोज होने वाली को बीमारी नहीं मानते ।
भूख एक बीमारी है पर उसे हम बीमारी नहीं मानते, क्योंकि यह रोज होने वाली घटना है । अगर भूख भी पांच-सात - दस वर्ष में एक बार लगती तो वह भी बीमारी होती, बहुत भयंकर बीमारी । किन्तु वह रोज लगती है, दिन में दो बार भी लग जाती है । अब हम इससे इतने परिचित हो गये कि इसको बीमारी नहीं मानते । केवल भूख का प्रश्न नहीं है, अनेक घटनाएं ऐसी होती हैं कि परिचय के कारण हम उनका नाम भी नहीं ले पाते, भी नहीं पाते । हमारे शरीर में कोई कम चमत्कार नहीं है । किन्तु हम उनसे इतने परिचित हो गये हैं कि उनको चमत्कार मानते भी नहीं ।
समझ
एक अंगुली हिलती है। कितना बड़ा चमत्कार है एक अंगुली का हिलना, किन्तु इसे कोई चमत्कार मानते ही नहीं हैं। क्योंकि यह बेचारी रोज हिलती है । अगर कभी-कभी हिलती तो यह भी बड़ा चमत्कार होता । इसे कोई चमत्कार नहीं मानते, किन्तु जानने वाले जानते हैं कि एक अंगुली को हिलाने के लिए कितने बड़े तंत्र का सहारा लेना पड़ता है । इतना बड़ा तंत्र शायद सरकार का भी नहीं है । पहले सोचते हैं, मस्तिष्क के ज्ञानतंतु सक्रिय होते हैं और फिर वे क्रियावाही तंतुओं को निर्देश देते हैं। वह निर्देश वहां तक पहुंचता है तो अंगुली हिलती है। बहुत छोटी-सी बात है, मैंने थोड़े में, एक मिनट में कह दी। पर प्रक्रिया इतनी बड़ी है कि करने बैठें तो हजारों-हजारों
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