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२८ | मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता ऊर्जा के स्रोत को मोड़कर नीचे से ऊपर की ओर ले जाना | साधना की समूची पद्धति, अध्यात्म का समूचा मार्ग ऊर्जा के ऊर्चीकरण का मार्ग है। ऊर्जा को नीचे के रास्ते से बहाएं नहीं, उसका संरक्षण करें, उसे एकत्रित करने का प्रयास करें ।
शरीर बहुत मूल्यवान् है । उसकी संक्षिप्त-सी चर्चा मैंने की है । चर्चा बहुत लम्बी है । मांसपेशियों का भी आध्यात्मिक मूल्य है । रक्त, नाड़ी-संस्थान
और ग्रंथियों का भी आध्यात्मिक मूल्य है। किन्तु इतनी लम्बी चर्चा में आज मैं नहीं जाना चाहता | मैंने केवल छोटी-सी चर्चा की कि शरीर की ऊर्जा का मूल्यांकन करना है । शक्ति के स्रोतों को अगर खोलें तो ऊपर की ओर खोलना है, नीचे की ओर नहीं | ऊपर का स्रोत खुलता है तो प्राणशक्ति का प्रवेश होता है और नीचे का स्रोत खुला रहता है तो प्राणशक्ति का निर्गमन होता है, बिजली’ बाहर जाती है और आदमी शक्तिशून्य हो जाता है ।
हम इस बात को जानते हैं कि शरीर हाड़-मांस का पतला है । लोहीमांस से भरा है, अपवित्र है, इस बात को बहुत बार सुना है, रटा है । इस बात को भी जानते हैं कि दुनिया में बड़े-से बड़ा काम किया जा सकता है, वह शरीर के माध्यम से किया जा सकता है । शरीर के सिवाय दुनिया की कोई ताकत नहीं जो बड़ा काम कर सके । शरीर हमारे लिए अत्यंत उपयोगी और सबसे बड़ा माध्यम है । तो हम शरीर को पहचानें, जानें, उसकी शक्ति को जानें, शक्ति के स्रोतों को जानें, उसके आध्यात्मिक मूल्यों को जानें और उन मूल्यों को जानकर शक्ति को ऊपर की दिशा में ले जाने की ओर कदम बढ़ाएं । अगर ऐसा होता है तो न केवल हमारी वर्तमान समस्याओं का समाधान होता है किन्तु मनुष्य के आसपास मंडराने वाली नाना प्रकार की विभीषिकाओं और नाना उलझनों को सुलझाने का भी एक राजमार्ग हमारी आंखों के सामने उतर आता है ।
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