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२६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
सकता है । हम अपनी शक्ति का उपयोग करना नहीं जानते । हमें अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं है । हमें अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं है ।
मैंने देखा, दो वर्ष पहले एक शिविर था । एक भाई हैदराबाद से आया । वह युवक था, पढ़ा-लिखा था । उसने कहा – मैं ध्यान तो कर सकता हूं, पर मेरी कठिनाई यह है कि आधा घंटा भी एक आसन में नहीं बैठ सकता । मैंने कहा- चिंता मत करो | पांच-चार दिन बीते । शिविर का छठा दिन होगा, चैतन्य केन्द्रों का ध्यान किया गया । दर्शन केन्द्र पर ध्यान टिका, गहराई आयी, आधा घंटा बीता, एक घंटा बीता, दो घंटे बीत गये, उसे पता ही नहीं कि कहां बैठा हूं, कब बैठा हूं। देशातीत, कालातीत और शरीरातीत बन गया । पता ही नहीं चला। दो घंटा बीत जाने के बाद एक भाई ने आकर मुझे कहा, वह तो वैसा का वैसा बैठा है । मैं गया और जाकर उसको संबोधित किया तब अकस्मात् जैसे वह कोई नींद में से जागा हो, उठा और आकर पैर पकड़ लिये । उसने कहा – मैं तो आज इस स्थिति में चला गया कि दुनिया क्या है और मैं कौन हूं, कुछ भी भान नहीं रहा । अपूर्व स्थिति बनी । आनन्दमय, केवल आनन्दमय ।
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हमारी शक्ति असीम है, यदि हम उसका उपयोग करना जानें | हमारे शरीर में शक्ति के तीन स्थान हैं—गुदा, नाभि और कंठ | एक नीचे, एक बीच में और एक ऊपर | नीचे का लोक, मध्य का लोक और एक ऊपर का लोक । ये तीन हमारे शक्ति के स्रोत हैं, ये तीन हमारे शक्ति के केन्द्र हैं । होता यह है कि शक्ति ऊपर से नीचे आ रही है । जबकि होना यह चाहिए कि शक्ति नीचे से ऊपर की ओर जाए । आचार्यों ने, तीर्थंकारों ने कहा कि इन्द्रियों के विषयों के प्रति आसक्त मत बनो । क्या उन्हें कोई द्वेष था ? क्या घृणा थी ? क्या कोई बुरा लगता था ? भला खाना किसको अच्छा नहीं लगता ! प्रिय शब्द सुनना किसको अच्छा नहीं लगता ! इन्द्रियों के सारे विषय बहुत अच्छे लगते हैं, किसी को बुरे नहीं लगते । किन्तु उन्होंने देखा कि इन इन्द्रियों के माध्यम से हमारी बड़ी से बड़ी शक्ति नीचे के स्रोत से बाहर जा रही है और आदमी शक्ति से खाली हो रहा है तथा शक्ति शून्य होकर एक प्रताड़ना का जीवन जी रहा है । इसलिए उन्होंने कहा कि संयम करो । आज संयम को शायद लोग मान बैठे कि यह दमन है, नियन्त्रण है ।
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