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स्थूल शरीर का आध्यात्मिक महत्त्व / २५ राजा के पास गया | बर्तन सामने रखा । राजा ने कहा- अरे ! यह तो कोई नया ही पदार्थ है | आज तक सेठ ने मुझे ऐसा पदार्थ नहीं खिलाया । राजा ने उसे सूंघा, बदबू आ रही थी । चखा और तत्काल मुंह सिकोड़ते हुए धूथू कर थूक दिया। राजा ने कहा- यह तो बड़ी कड़वी चीज़ है । कोई बात नहीं, जो मीठा देती है वह कभी-कभी कड़वा भी दे सकती है । इतने में दूसरा आदमी सोने के बर्तन में गरम-गरम गोबर लेकर आया । राजा ने देखा, कहा— अरे ! यह भी नयी चीज ! आज तक इतनी गरम चीज नहीं देखी । राजा ने चखा । मुंह खराब हो गया । थू-थू कर थूका । गुस्सा आ गया | उसने कहा— सेठ ने धोखा दिया है, जो मूल वृक्ष था, उसे वह साथ ले गया और जो दूसरा खराब वृक्ष था, उसे वह यहां छोड़ गया । दौड़ो, उसे पकड़ कर लाओ । अभी तक वह सीमा के बाहर नहीं गया होगा । जहां भी हो, उसे पकड़कर ले आओ ।
कर्मचारी दौड़े । सेठ को पकड़कर ले आये । राजा ने कहा- मेरे साथ भी धोखा ! सेठ बोला- राजन् ! कभी नहीं । आपके साथ धोखा कैसे कर सकता हूं ?
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राजा ने सारी बात बताई । सेठ बोला - राजन् ! वृक्ष वही है । उसी के उपहार मैं आपको देता रहा हूं । आपके आदमी उसके फल लेना नहीं जानते । मैं उन्हें फल लेने की विधि बता देता हूं ।
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सेठ ने गाय को दुहने की विधि उन कर्मचारियों को सिखाई, दही जमाने और मक्खन निकालने की प्रक्रिया का भी उन्हें ज्ञान करा दिया । अब राजा को पूर्ववत् दूध, दही और मक्खन मिलने लगा । राजा के कर्मचारियों ने राजा से कहा- महाराज ! वृक्ष वही है । हम पहले दोहना नहीं जानते थे । जो दोहना नहीं जानता उसे भला दूध कैसे प्राप्त हो सकता है ? दूध के बिना दही और मक्खन कहां से आए ?
जरूरत है दोहन की, जरूरत है मन्थन की । हम शरीर की शक्तियों को दोहना नहीं जानते । हमारे शरीर के भीतर कितनी बड़ी शक्तियां हैं । एक आदमी को कहा जाए कि तुम एक आसन में तीन घंटा बैठ जाओ । अरे ! कैसे बैठा जा सकता है, कभी नहीं बैठा जा सकता है। शरीर के भीतर इतनी ताकत है कि तीन घंटा नहीं, तीन महीने तक एक स्थान पर बैठा जा
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