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स्थूल शरीर का आध्यात्मिक महत्त्व | २३ रे के सामने आदमी खड़ा होता है, एक फोटो आता है। उस मशीन से २५० फोटो आते हैं | और छोटी-से-छोटी शिरा का फोटो उसमें अंकित हो जाता है । एक मशीन और है जो रक्त की जितनी क्रियाएं, जितने फंक्शन होते हैं, उन सारे कार्यों का विश्लेषण कर देती है ।
शरीर के बारे में आज का शरीरशास्त्री, आज का वैज्ञानिक बहुत जानने लग गया । इतना विकास हुआ है कि वह ऑपरेशन करता है, एक अवयव को एक स्थान पर से काटकर दूसरे स्थान पर लगा देता है, नसों को बांध देता है, चिपका देता है, बिछा देता है । नकली आंख, नकली हृदय, नकली गुर्दा प्रस्थापित कर देता है । पैरों एवं हाथों की तो बात छोड़ दें । वे तो नकली होते ही हैं । संभव है दिमाग का भी ऑपेशन हो और भविष्य में नकली दिमाग भी लगा दिया जाए।
प्राचीन साहित्य में हम पढ़ते हैं देवता का कर्तृत्व कि देवता में उतनी . शक्ति होती है कि वह किसी आदमी के सिर को काट लेता है, उसे चूरचूर कर देता है, चूर्ण कर आकाश में बिखेर देता है । फिर सारे अणुओं को इकट्ठा कर पुनः उस मस्तिष्क को बनाता है और उसी आदमी के लगा देता है । आदमी को पता नहीं चलता कि कुछ किया है । यह देवता का दिव्य चमत्कार हम सुनते आये हैं । आज का डॉक्टर भी उस देवता से कम नहीं
है।
अश्विनीकुमार की कथाएं हम सुनते रहे हैं । ये स्वर्ग के वैद्य कहलाते हैं। आज का डॉक्टर भी शायद अश्विनीकुमार से कम नहीं है । इतना विलक्षण काम करके दिखाता है वह कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । इतना जान लेने पर भी, समूचे शरीर को चीर-फाड़कर एक-एक अवयव सामने रख देने पर भी क्या शरीर के पूरे रहस्यों को जान लिया गया ? नहीं जाना जा सका । आज के एनोटॉमी और फिजिओलॉजी के बड़े-बड़े विद्वान् और मर्मवेत्ता कहते हैं कि अभी तक मस्तिष्क के रहस्यों को नहीं जाना जा सका है। हजारवां भाग भी नहीं जाना जा सका है | लघु मस्तिष्क इतने रहस्यों से भरा है कि उसको हम पूर्ण रूप से अभी तक नहीं जान पाए । पिनियल, पिच्यूटरी ग्लैण्ड के रहस्यों को पूरा नहीं जाना जा सका है । नाड़ी-तन्त्र और ग्रंथि-तन्त्र में इतने रहस्य हैं कि आज भी उनका कोई पता नहीं चलता ।
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