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२२ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
उसे स्वीकार नहीं कर पाता ।
तीसरा मूल्यांकन का दृष्टिकोण है उस जौहरी का जो हीरे को जानता है और उसका उपयोग भी कर लेता है | जो शरीर की यथार्थता जानता है और उससे लाभ भी उठा लेता है।
क्या मैं शरीर को हीरे के साथ तोलूं ? क्या शरीर की तुलना हीरे साथ होगी ? मुझे कहना चाहिए कि दुनिया में कोई भी पदार्थ उतना मूल्यवान नहीं है, जितना मूल्यवान है हमारा शरीर । जितने मूल्य दुनिया में प्रस्थापित होते हैं वे सारे इस शरीर के द्वारा होते हैं । अगर एक शरीर न हो तो सारे मूल्य समाप्त हो जाते हैं । जिस शरीर ने सारे पदार्थों को मूल्य दिया, जो शरीर सारे मूल्यों की व्याख्या करता है, प्रस्थापना करता है, उस शरीर का क्या कभी मूल्य बताया जा सकता है ? कभी नहीं बताया जा सकता । यह अमूल्य है, और उस अमूल्य को हमने कभी जानने का प्रयत्न ही नहीं किया ।
आदमी शरीर को जानता है, सबसे पहले रंग और रूप के माध्यम से । चाहे अपने शरीर को देखें, चाहे दूसरे के शरीर को देखें, हमारे सामने या तो रूप आएगा, रंग आएगा या उसका संस्थान आएगा । किस प्रकार की बनावट और किस प्रकार रंग-रूप, ये सामने आएंगे । फिर चमड़ी आएगी। बस, यह दीवार है हमारी आंखों के लिए | इस चमड़ी के भीतर देखने की शक्ति आंखों में नहीं है । वे इतनी सक्षम नहीं हैं कि भीतर झांक सकें और देख सकें । हमारे लिए चमड़ी दीवार बन गई । फिर भी जानते हैं कि इसके भीतर खून है, मांस है, मज्जा है, हड्डियां हैं । हम इन सबको जानते हैं । इसके भीतर मल-मूत्र है, वायु है, कफ है, पित्त है, यह भी हम जानते हैं | इसके आगे शायद और नहीं जानते । शरीरशास्त्री कुछ और अधिक जानता है । नाड़ियों को जानता है, नाड़ी-संस्थान को जानता है, ग्रंथियों को जानता है, शरीर के एक-एक अवयव को जानता है, छोटी-से-छोटी धमनी को जानता है, रक्त के प्रवाह को जानता है, रक्त संचार को जानता है और रक्त के द्वारा होने वाली क्रियाओं को जानता है । ____ अभी दो दिन पहले एक भाई ने बताया कि कलकत्ता में एक मशीन आई है—बहुत विलक्षण है । एक साथ २५० फोटो लेती है शरीर का । एक्स
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