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________________ अहिंसा सार्वभौम और अणुव्रत हिंसा और अहिंसा जीवन-कालचक्र के रात और दिन हैं । जीवन के लिए हिंसा अनिवार्य मानी जाती है । समाज-रचना के लिए अहिंसा अनिवार्य है। कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं जी सकता ! उसे समाज में ही जीना होता है । कोई भी जीवन केवल हिंसा से नहीं चलता और समाज की रचना हिंसा से हो ही नहीं सकती । हिंसक मनुष्य कभी अपना समाज नहीं बना सकता। समाज के मूल में अहिंसा की प्रेरणा रही है । एक साथ रहना, एक साथ जीना, अहिंसा की प्रेरणा के बिना संभव नहीं हो सकता । आज अहिंसा का प्रश्न एक नये संदर्भ में उपस्थित हो रहा है । और आज का नया संदर्भ है आज का 'अणु-अस्त्र' । आज की आणविक अस्त्रों की विभीषिका ने अहिंसा को फिर से पुनर्जीवन प्रदान किया । धार्मिक दृष्टि से अहिंसा पर विचार प्राचीनकाल से चलता आ रहा है। एक समय था जब अहिंसा का मूल्य केवल धार्मिक था, किन्तु आज उसका सामाजिक मूल्य भी है और जब संपूर्ण मानवजति की समाप्ति का चित्र प्रस्तुत होता है तब हर आदमी कांप उठता है । लगता है मानवजाति का अस्तित्व ही समाप्त होने की स्थिति में है । इस स्थिति के संदर्भ में यह अत्यावश्यक हो गया है कि अहिंसा को नये संदर्भ में देखा जाए, समझा जाए और हिंसा की भयानकता को कम करने की दिशा में मनुष्य के चरण आगे बढ़ें। अहिंसा के तीन आयाम हो जाते हैं— व्यक्ति की अहिंसा, समाज की अहिंसा और जागतिक अहिंसा । आज व्यक्ति की अहिंसा और समाज की अहिंसा का मूल्य कम हो गया है । जागतिक अहिंसा का नया मूल्य स्थापित होने जा रहा है । किन्तु कठिनाई यह है कि जगत् बहुत बड़ा है | जो जितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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