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साधन-शुद्धि का सिद्धान्त । २४५ हिंसा है । आर्थिक प्रलोभन भी हिंसा है । धन से धर्म नहीं हो सकता । हिंसा से अहिंसा नहीं हो सकती ।
प्रश्न थोड़ा आगे बढ़ सकता है । कुछ लोगों ने आगे बढ़ाया भी है कि हिंसा से तो धर्म होता है । एक व्यक्ति कोई भी धर्म का काम करता है, अहिंसा का काम करता है, तो पहले हिंसा करता है, बाद में अहिंसा होती है । आचार्य भिक्षु ने इस पर बहुत सुन्दर प्रकाश डाला है । एक व्यक्ति ने आकर कहापुस्तकें नीचे नहीं रखनी चाहिए । क्योंकि यह ज्ञान है । आचार्य भिक्षु ने कहाबड़ी अजीब बात है । सुझाव अच्छा है । पुस्तकें नीचे नहीं रखनी चाहिए, उनका सम्मान करना चाहिए । पर पुस्तकें ज्ञान है, यह बात गलत है । अगर पुस्तक ज्ञान है, तो फिर पुस्तक खो गई तो ज्ञान भी खो गया । पुस्तक फट गई तो ज्ञान भी फट जाएगा । पुस्तक चुरा ली गई तो ज्ञान भी चुरा लिया जाएगा । पुस्तक ज्ञान कहां है ? पुस्तक ज्ञान का साधन नहीं है, निमित्त है | बहुत बड़ा अन्तर है निमित्त और साधन में । साधन वह होता है जो साधकतम होता है | ज्ञान का साधन है—हमारी बुद्धि, न कि पुस्तक | घी निकाला । घी का साधन क्या है ? दही । दही का साधन है दूध । दूध का साधन है गाय । गाय के दूध बनने का साधन है घास । घास का साधन है उसे उगाने वाला पानी और भूमि | चलते चलो | साधन-माला इतनी लंबी हो जाएगी कि दुनिया का एक पत्ता भी नहीं बचेगा, जो साधन नहीं बनता हो । वास्तव में घी का साधन है दूध । शेष सारे निमित्त हैं । इसी प्रकार धर्म का साधन है अहिंसा । हिंसा साधन नहीं बन सकता धर्म का, वह कहीं लम्बी श्रृंखला में निमित्त बन सकता है।
साध्य-साधन की मीमांसा के संदर्भ में आचार्य भिक्षु का सूत्र है—शुद्ध साध्य के लिए शुद्ध साधन ही कार्यकर होते हैं । अशुद्ध साधनों से शुद्ध साध्य की उपलब्धि नहीं हो सकती ।
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