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जीवन का उद्देश्य | १५ हो सकता है, उतना अपराधी सामान्य आदमी नहीं हो सकता । बुद्धिमान आदमी अनेक उपायों को जानता है । वह छिपाना जानता है, चालाकी जानता है, वह सब कुछ जानता है । जो बुद्धिमान नहीं है, सीधा-सादा है, वह जानता नहीं । बच्चा कुछ भी नहीं छिपाता । जो कुछ करता है सब सामने स्पष्ट रूप से करता है । पशु भी छिपाना नहीं जानता । आदमी में बुद्धि है । जैसे-जैसे बुद्धि का विकास हुआ है, वैसे-वैसे उसका चातुर्य बढ़ा है। वह छिपाने और ठगने की कला में निष्णात हुआ है । वह अपनी कामना और आकांक्षा को भी छिपा लेता है।
पत्नी एक बढ़िया साड़ी खरीदकर लायी । पति ने कहा—यह क्या किया तुमने ? हम तंगी से गुजर रहे हैं । तुमने एक साड़ी के लिए पांच सौ रुपए खर्च कर डाले । इतनी कीमती साड़ी की अपेक्षा ही क्या थी ! पली बोलीमैं जानती हूं, समझती हूं | घर की आर्थिक स्थिति कमजोर हैं । मुझे इतनी कीमती साड़ी नहीं खरीदनी चाहिए थी । पर खरीदने के लिए विवश होना पड़ा । मैं और मेरी सहेली बाजार गयी । अपना घर लोगों की दृष्टि में संपन्न है । वह गरीब घर की है। उसने दो सौ रुपयों की साड़ी खरीदी तो घर की लाज रखने के लिए मुझे पांच सौ की साड़ी खरीदनी पड़ी।
मन की आकांक्षा, मन की उड़ान, मन की अतृप्ति को आदमी छिपाना जानता है | उस महिला ने मन की आग को राख से ढककर उत्तर दिया । वह पढ़ी-लिखी थी, इसलिए चतुराई से छिपाने में सफल हो गई ।
पूरे समाज के पढ़े-लिखे लोगों का सर्वेक्षण किया जाए तो पता चलेगा कि बने-बनाए प्रश्नों और समाधानों के द्वारा आदमी अपने भीतर की समस्त दुर्बलताओं को छिपा रहा है और बाहर से स्वस्थ होने का स्वांग रचा रहा है । बीमारी कहीं है | और उसका समाधान अन्यत्र खोजा जा रहा है |
जैन दर्शन ने इस दिशा में एक समन्वित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया । यह दृष्टिकोण शिक्षा जगत् के लिए भी महत्वपूर्ण है और व्यत्वित्व के निर्माण के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । उसमें वर्तमान की सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूंढ़ा जा सकता है । उसने कहा—जहां ज्ञान का विकास हो, वहां उसके साथ-साथ मूर्छाविलय का भी प्रयत्न हो । आवरण को हटाने का प्रयत्न, मूर्छा और मूढ़ता को मिटाने का प्रयत्न यदि होता है तो ज्ञान केवल प्रकाश
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