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साधन-शुद्धि का सिद्धान्त / २३९
क्या है ? चिन्तन में कहां तक पहुंचना चाहिए ? इसमें थोड़ी रुकावट या बाधा भारतीय मानस में रही है ।
साधन-शुद्धि का प्रश्न बहुत महत्त्व का है । पर साध्य को सामने रखे बिना उस पर चिन्तन नहीं किया जा सकता । यदि साध्य को नजर अन्दाज कर चिन्तन किया जाता है तो वह गड़बड़ा जाता है । ऐसी गड़बड़ियां हुई हैं। हमें साध्य के संदर्भ में ही साधन का चिन्तन करना होगा । महात्मा गांधी ने साधन-शुद्धि पर विचार किया । हम मार्क्स और गांधी को एक दृष्टि से नहीं देख सकते । गांधी अध्यात्म-प्रधान व्यक्ति थे । वे प्रत्येक प्रश्न को अध्यात्म की दृष्टि से देखते थे और वे कहते भी थे 'मैं एक आध्यात्मिक व्यक्ति हूं, राजनैतिक व्यक्ति नहीं हूं । मैं धार्मिक हूं। राजनीति तो मेरा कार्यक्षेत्र है ।' गांधीजी अपने आपको राजनैतिक व्यक्ति मानकर राजनीति का चिन्तन नहीं करते थे । वे मूलतः आध्यात्मिक प्रकृति के थे, इसलिए अध्यात्म के आधार पर चिन्तन करते थे । उनके सामने लक्ष्य था -- सत्य की प्राप्ति, न राज्य की प्राप्ति और न स्वतंत्रता की प्राप्ति । स्वतंत्रता पाना उनका प्रधान लक्ष्य नहीं था । किन्तु यदि शुद्ध साधनों के द्वारा वह मिले तो वह काम्य था । किन्तु उद्देश्य उनका था सत्य की प्राप्ति । इस दृष्टि से विचार करेंगे तो आध्यात्मिक साध्य को सामने रखकर करेंगे, सत्य-प्राप्ति को सामने रखकर करेंगे | इस आधार पर उनका साधन शुद्ध ही होगा, क्योंकि जहां अध्यात्म, धर्म और मोक्ष का प्रश्न है, वहां साधन का शुद्ध होना अनिवार्य है । अशुद्ध साधन नहीं हो सकता ।
कुछ विपर्यय हुआ है । साध्य तो है निर्वाण और मोक्ष, साधन बना लिया धन को । यह प्रश्न प्रज्वलित हुआ । आचार्य भिक्षु को भी यह बात क्यों सूझी ? इस पर उन्होंने इतना चिन्तन क्यों किया ? इसका भी पुष्ट कारण था । उन्होंने देखा कि धर्म के क्षेत्र में भी साध्य के अनुरूप साधन का निर्वाचन नहीं किया जा रहा है । साध्य तो है निर्वाण और साधन माने जाते हैं प्रलोभन, बल-प्रयोग | ये निर्वाण की दृष्टि से गलत साधन हैं । प्रलोभन से निर्वाण का साध्य कैसे सधेगा ? निर्वाण की पहली शर्त है अभय । धर्म का पहला चरण है अभय । जब अभय घटित नहीं हुआ, भय नहीं मिटा तो मोक्ष कैसे मिलेगा ? निर्वाण कैसे होगा ? धर्म कैसे होगा ? अहिंसा पहला
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