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२४० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता कदम नहीं है | पहला कदम है अभय । अहिंसा मुख्य बात नहीं है । मुख्य बात है अपरिग्रह । मैं फिर कहना चाहता हूं कि लोग कहते हैं कि महावीर ने अहिंसा पर बहुत बल दिया । कहने वालों के लिए यह स्वाभाविक है कि वे परिधि को पकड़कर ऐसा कह रहे हैं । वे केन्द्र तक नहीं पहुंच पाते । महावीर ने अहिंसा पर बाद में बल दिया, पहले बल दिया अभय पर | महावीर ने अभय के विषय में जो कहा, वह अनुभव की वाणी है, भारतीय साहित्य में विरल वाणी है । उन्होंने कहा—'डरो मत । किसी से मत डरो | न बीमारी से डरो, न मौत से डरो, न कष्ट से डरो और न भूत से डरो । किसी मत डरो | जो प्राप्त हो, उसे स्वीकार करो | भूत उसी को सताता है, जो डरता है । जो नहीं डरता, उसे भूत नहीं सताता | भूत पुरुषों को कम, स्त्रियों को अधिक सताता है | क्यों ? क्या भूत भी कोई अन्तर करता है स्त्री और पुरुष में ? भूत का स्वभाव है कि जो ज्यादा डरता है, उसे वह ज्यादा सताता है । स्त्रियां ज्यादा डरती हैं, इसलिए भूत भी उन्हें अधिक सताते हैं । जो चूहे से डरे, उसे भूत न डराए यह कैसे संभव हो सकता है ? जो चूहे से भी डर जाती है, भूत उसे अवश्य डराएगा | यह स्वाभाविक है ।।
महावीर ने अभय की साधना पर बल दिया । अभय अहिंसा का साधन है | जहां भय है वहां अहिंसा नहीं हो सकती । भय और अहिंसा का कोई मेल नहीं, कोई संगति नहीं । फिर भी कुछ व्यक्तियों ने भय को अहिंसा का साधन मान लिया । एक बिल्ली चूहे पर झपट रही है । किसी ने बिल्ली को डराकर अलग कर दिया । प्रश्न पूछा गया- इस क्रिया में क्या होगा? उत्तर मिलता है-धर्म होगा । फिर पूछा गया--धर्म कैसे हुआ ? उत्तर मिलता है—चूहा बच गया, इसलिए धर्म हुआ ।
- चूहे को तो बचा लिया पर बिल्ली को डरा कर भगा दिया । बिल्ली को भयभीत कर तुमने भगा दिया और अहिंसा मान लिया । यह दोहरी भूल है । भय के द्वारा यदि अहिंसा फलित होती है तो आज सबसे बड़ी अहिंसक होती राज्य-सत्ता, जिसके पास भय पैदा करने के प्रचुर साधन हैं । आज के शासकों के पास इतनी शक्ति नहीं है, पर प्राचीन राजाओं के पास इतनी शक्ति थी कि ऐसी घोषणाएं करवा देते । भय के सिवाय और कुछ होता ही नहीं । ऐसी स्थिति में सारा धर्म राजाओं के पास चला जाता और डरने
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