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२३८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
यदि नीच वृत्ति वाले आदमी का सामना हो जाए तो उसे अर्थ का प्रलोभन दो । तुम्हारा हित सधने लग जाएगा ।
यदि कोई बराबर बल वाला सामने आ जाए तो ये पहले के तीनों साधन गलत हो जाएंगे। वहां अपना पराक्रम प्रदर्शित कर उसे भगा दो । ये राजनीति के चार सूत्र हैं ।
एक बार एक गीदड़ जंगल में कहीं जा रहा था । उसने देखा कि हाथी का मृत कलेवर पड़ा है और कोई पशु-पक्षी वहां नहीं है। उसने सोचा, यह मेरे लिए अनेक दिनों का पर्याप्त भोजन होगा । इतने में ही एक सिंह वहां आ गया । गीदड़ ने कहा- महाराज ! यह किसी अन्य पशु के द्वारा मारा गया है । आप इसे क्या खाएंगे ? आपके लिए शोभा नहीं देता । सिंह चला गया | थोड़े समय पश्चात् एक चीता आया । उसने हाथी के कलेवर को देखा और मन ललचा उठा । इतने में ही गीदड़ ने भेदनीति का सहारा लेते हुए कहा – अरे, आप यहां ! अभी-अभी केशरीसिंह इसे मारकर गया है । वह पुन: लौटने वाला है । आपको देखते ही वह आपको मार देगा । चीता वहां से भाग गया । गीदड़ की भेदनीति काम कर गई ।
इतने में ही कौवे इकट्ठे होकर कांव-कांव करने लगे । गीदड़ ने सोचाइनकी आवाज़ से और भी पशु-पक्षी एकत्रित हो जाएंगे। मेरे भक्ष्य में बाधा आएगी । उसने हाथी के शरीर से मांस का एक लोंदा निकाला और कौवों की ओर फेंक दिया । वे उसके टुकड़े-टुकड़े लेकर उड़ गए ।
कुछ क्षण बीते । गीदड़ आ गया। पहले वाले गीदड़ ने उससे लड़ना प्रारंभ किया और उसे भगा डाला ।
राजनीति के चारों सूत्रों को उसने काम में ले लिया ।
(राजनीति में साधन-शुद्धि पर विचार नहीं किया जाता ।) मैं इसे दूसरी दृष्टि से देखता हूं। क्या राजनीति में इसे अशुद्ध साधन माना जाए ? यह चिन्तनीय है । इस पर चिन्तन होना चाहिए । चिन्तन हो भी रहा है | हर जगह एक ही दृष्टि से किसी साधन को अशुद्ध कहें तो चिन्तन में गड़बड़ी होगी ।
एक बात । भारतीय चिन्तन में बहुत पैनापन नहीं रहा । बहुत ऊपरऊपर की बात का चिन्तन होता है । कैसे सोचना चाहिए ? चिन्तन की प्रक्रिया
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