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साधन-शुद्धि का सिद्धान्त
भारतीय चिन्तन में चार दृष्टिकोण प्रधान रहे हैं—काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष । इनके आधार पर चार पुरुषार्थ बने । चार ही दृष्टिकोण और चार ही पुरुषार्थ । एक दृष्टिकोण काम-प्रधान है, दूसरा अर्थ-प्रधान, तीसरा धर्म-प्रधान और चौथा मोक्ष-प्रधान | चारों दृष्टिकोण जीवन के परिपार्श्व में हैं, किन्तु दृष्टिकोण की प्रबलता के कारण एक प्रधान बन जाता है, शेष गौण ।
फ्रायड ने जो कहा, वह कोई नयी बात नहीं थी । काम-प्रधान दृष्टि वाले जितने व्यक्ति होते हैं, वे सब यही बात कहते हैं, इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं।
मार्क्स ने अर्थ को प्रधानता दी । वह भी नयी बात नहीं थी। महामात्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र बनाया । उसका नाम है 'कौटिल्य अर्थशास्त्र' । उन्होंने चार पुरुषार्थों में कौन-सा पुरुषार्थ प्रधान है, इस चर्चा के प्रसंग में अनेक मत उद्धृत किए हैं। उन्होंने लिखा है—'कोई काम को प्रधान मानता है, कोई धर्म को प्रधान मानता है और कोई मोक्ष को प्रधान मानता है | किन्तु मैं अर्थ को प्रधान मानता हूं | अर्थ के बिना कुछ भी नहीं होता | अर्थ के आधार पर ही समाज बनता है बिगड़ता है।'
मार्क्स की अवधारणा भी यही थी । मार्क्स से पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व चाणक्य ने इस अवधारणा का सूत्रपात किया था ।
फ्रायड ने 'काम' को प्रधान माना । काम मौलिक मनोवृत्ति है । उसके आधार पर ही कलाओं का विकास हुआ है | काम का उदात्तीकरण हुआ
वात्स्यायन ने 'कामसूत्र' रचा | उसमें उन्होंने काम को बहुत महत्त्व
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