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________________ २२० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता दिन पहला शस्त्र बनाया, चाहे पत्थर का बनाया, चाहे लोहे का बनाया, शस्त्र बनाया, डरकर बनाया । यदि आदमी डरा नहीं होता तो कभी शस्त्र का निर्माण नहीं करता । शस्त्र का अर्थ ही है कि डर को पालते रहना और साथ में लेकर चलना कि कभी कोई प्रहार न कर दे, कोई मार न दे, कहीं कोई चोट न पहुंचा दे । शस्त्र और भय दोनों पर्यायवाची हैं । यह बात तो समझ में आती है कि भय के कारण शस्त्र का निर्माण किया गया है | आज का तर्क है कि शान्ति के लिए शस्त्र का निर्माण किया जाता है | शक्ति-संतुलन का एक सिद्धान्त बन गया कि जब शक्ति-संतुलन है तो कोई युद्ध करने का साहस नहीं करेगा और शक्ति-संतुलन बिगड़ जाएगा तो संसार में युद्ध छिड़ जाएगा। एक प्रश्न उनसे पूछा जा सकता है कि शक्ति-संतुलन की बात भी हम मान लेते हैं, शान्ति के लिए शस्त्र के निर्माण की बात हम स्वीकार कर लेते हैं पर क्या पूरी मनुष्य जाति को नष्ट करने का अधिकार तुम्हें प्राप्त है, इसे भी हम स्वीकार कर लें ? या किसी भी राष्ट्र को यह अधिकार है कि पूरी मानव जाति को नष्ट कर दे ? हो सकता है, एक राष्ट्र अपने पड़ोसी राज्य को हड़प ले, उस पर अपना अधिकार जमा ले । बात समझ में आ सकती है कि यह मनुष्य की दुर्बलता है । पर क्या एक राष्ट्र दस-बीस करोड़ की आबादी वाला राष्ट्र, अरबों-खरबों मनुष्यों के भाग्य को हाथ में ले ले और पूरी मनुष्य-जाति को ही समाप्त कर दे ? यह अधिकार क्या उन्हें प्राप्त है ? बहुत बड़ा प्रश्न है । हमें इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए और विश्व-शान्ति के संदर्भ में इस प्रश्न को उठाना चाहिए । भगवान् महावीर ने एक सूत्र दिया असंग्रह और अनाग्रह का । उसका फलित है अहिंसा | उसका समीकरण इस प्रकार होगा-असंग्रह + अनाग्रह = अहिंसा । आज असंग्रह और अनाग्रह-ये दोनों बातें भुला दी गई हैं । असंग्रह का विकास होता है तो बाजार पर अधिकार करने की बात कमजोर पड़ती है । अनाग्रह का विकास होता है तो विचार पर अधिकार करने की बात समाप्त होती है । ये दोनों बातें हमारे सामने हैं । इस दिशा में चिन्तन करें, सोचें और अपना दायित्व अनुभव करें । हर व्यक्ति यह अनुभव करे कि अगर आज विश्व में अशांति है तो उसका एक जिम्मेवार मैं भी हूं और विश्व में शान्ति का प्रचार होना चाहिए, उसमें एक आहुति मेरे विचार की भी लगनी चाहिए । इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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