________________
व्यक्ति और विश्व शांति / २१९
बड़ा सम्राट् है ।' सिकन्दर की विशेषताएं बताई जाती थीं, नेपोलियन की विशेषताएं बताई जाती थीं, नादिरशाह जैसे क्रूर शासकों की भी विशेषता बता दी जाती थी, कोई बुरा नहीं माना जाता था । यह अधिकार माना जाता था, कर्त्तव्य माना जाता कि जो राजा या जो सम्राट् अपने राज्य का विस्तार करता है, वह महान होता है, बड़ा होता है । किन्तु युग - चिन्तन में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया । आज मनुष्य जाति का चिन्तन इतना आगे बढ़ गया कि वैसी साम्राज्यवादी मनोवृत्ति को अच्छा नहीं समझा जाता । जो साम्राज्यवादी बने थे उन्हें अपने साम्राज्य का संकोच न करना पड़ा है, फैलाव वे नहीं कर सके । ब्रिटेन का कितना बड़ा साम्राज्य था । आज सिकुड़ गया । स्पेन का, फ्रांस का साम्राज्य सिकुड़ गया । जितने उपनिवेश थे सब समाप्त हो गए । जो कुछ बचे हैं, वे समाप्त होने की अवस्था में हैं। क्योंकि सारे संसार ने मान लिया कि यह साम्राज्यवादी मनोवृत्ति मनुष्य जाति के लिए हितकर नहीं है । और ऐसा करने वाला कोई बड़ा नहीं बनता, किन्तु दुनिया की नजरों में गिरता है | साम्राज्यवादी दृष्टिकोण तो बदल गया किन्तु दूसरा दृष्टिकोण पैदा हो गया । नया दृष्टिकोण जन्म गया । वह है — बिना भूमि को हड़पे, बिना शासन पर अधिकार जमाए परोक्षतः कान पकड़ लेना और 'द्राविडी प्राणयाम' करा लेना । एक नया फार्मूला सामने आया कि यहां न तो भूमि पर अधिकार, न शासन पर अधिकार किंतु अधिकार इतना कि शायद पुराने जमाने में भी नहीं होता था । साम्राज्यवादी लोग भी इतना नहीं करते थे । वैसे अधिकार की भावना का आज बहुत चतुराई और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ विस्तार हुआ है । खेमे बन गए । एक साम्यवादी देशों का खेमा, दूसरा पूंजीवादी देशों का खेमा – दो खेमे बन गए । या तो इस खेमे में आओ या उस खेमे में जाओ । अब दोनों को अपने - अपने खेमे को बचाना है । प्रश्न आया शक्ति-संतुलन का । शक्ति-संतुलन होगा तभी युद्ध नहीं होगा और शक्ति-संतुलन बिगड़ जाएगा तो युद्ध हो जाएगा । आज का बहुत महत्त्वपूर्ण और आश्चर्य पैदा करने वाला तर्क यह है कि शस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है— शान्ति के लिए । पुराने जमाने में यह तर्क था कि शस्त्र का निर्माण होता है भय को मिटाने के लिए । भय है मनुष्य में और अपने भय को मिटाने के लिए वह शस्त्रों का निर्माण करता है । मनुष्य ने जिस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org