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________________ २१६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता यह है कि सारा भाग्य का दायित्व मंत्रियों के हाथों में आ गया है। महावीर, बुद्ध आदि हिन्दुस्तान में हुए । उन्हें बड़े-से-बड़े वैज्ञानिक से ऊंचा वैज्ञानिक माना जा सकता है । क्या कारण है ? उन्होंने हिंसा की बात नहीं कही, उन्होंने पदार्थवादी दृष्टिकोण, सुख-सुविधावादी दृष्टिकोण को महत्त्व नहीं दिया । कारण क्या ? उनका अहिंसात्मक दृष्टिकोण था । वे राज्यसत्ता के इशारे पर नहीं चलते थे, राज्यसत्ता उनके इशारे पर चलती थी। आज का वैज्ञानिक भी बहुत प्रबुद्ध है | उसने सूक्ष्म सत्यों को खोजा है और रहस्यपूर्ण तथ्य प्रकट किए हैं । उसने परमाणु के रहस्य का उद्घाटन किया है जो सचमुच आश्चर्य में डाल देता है | पदार्थ की सूक्ष्मता में उसने प्रवेश किया है । प्रकाश को उसने उपलब्ध कराया है, अन्तरिक्ष को खोजा है, भूमि को खोजा है और मनुष्य के लिए अनेक द्रुतगति के साधनों का आविष्कार किया है। फिर क्या कारण है कि वे महावीर और बुद्ध की कोटि में नहीं आ सके ? इसीलिए नहीं आ सके कि उनका अपना कोई त्याग नहीं है, उनका अपना कोई संयम नहीं है । वे राज्य-सत्ता से जुड़े हुए हैं | उन पर राज्य-सत्ता का अंकुश है । राज्य-सत्ता जैसा चाहती है वैसा वैज्ञानिकों से करवाती है । जो वैज्ञानिक वैसा नहीं करते उनकी पदोन्नति होते-होते रुक जाती है | कहीं-के-कहीं उन्हें स्थानान्तरित कर दिया जाता है । राज्य-सत्ता के इशारे पर सारे-के-सारे चल रहे हैं । जब ज्ञान सत्ता के साथ जुड़ जाता है तो अशांति के अतिरिक्त और कोई कल्पना नहीं की जा सकती । ऐसा लगता है कि अधिकार और सत्ता ज्ञान-विज्ञान आदि सबको अपने पंजे में समेटे रखना चाहते हैं। हम शांति की चर्चा करें और विश्व-शांति की चर्चा करें पर इस बात को न भूलें कि मनुष्य में हिंसा का भाव है, क्रोध का भाव है, लालसा है पद की, प्रतिष्ठा की, वैभव की, समृद्धि की, साम्राज्य-विस्तार की लिप्साएं हैं। वह स्वयं सबसे बड़ा बनना चाहता है, अपने राष्ट्र को सबसे बड़ा बनाना चाहता है । जब ये सारी भावनाएं सक्रिय हैं, उस स्थिति में हम कल्पना करें कि विश्व-शान्ति हो सकेगी, बड़ा कठिन लगता है । विश्व-शान्ति की संभावना कैसे हो सकती है जब कि ये सारी भावनाएं मनुष्य में हैं ? एक ओर बड़ेबड़े राष्ट्र सारे संसार पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। आज की लड़ाई, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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