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व्यक्ति और विश्व-शांति / २१५ नहीं मिल रही है, सारी प्राथमिकता मिल रही है पदार्थ को ।
कल किसी भाई ने कहा कि एक फैक्टरी में नये यंत्र लग रहे हैं। बहुत बड़ा काम होगा । केवल पांच मनुष्यों की जरूरत होगी । सारा काम
ओटोमेटिक होगा | बात सुनने में तो बड़ी अच्छी लगती है और पदार्थवादी दृष्टिकोण से देखें तो बहुत महत्त्वपूर्ण बात है | किन्तु चैतन्य की दृष्टि से देखते हैं तो इससे घटिया कोई बात हो नहीं सकती । इससे खतरनाक कोई बात हो नहीं सकती कि यहां सारा मनुष्य का काम यंत्र करेगा | मनुष्य निकम्मा बनेगा और यंत्र सक्रिय बनेगा । मनुष्य पैरों तले कुचला जाएगा । उसकी गरीबी बढ़ेगी | यंत्र की समृद्धि बढ़ेगी । यह मनुष्य जाति के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना होगी । जहां मनुष्य का मूल्य कम होता है, वहां पदार्थ का मूल्य बढ़ जाता है | आज विश्व की अशांति का हेतु यही लग रहा है कि मनुष्य का मूल्य कम हो गया, पदार्थ का मूल्य बढ़ गया ।
विज्ञान ने बहुत गति की है, किंतु एक विपर्यय हो गया। विज्ञान और राजनीति का समीकरण होगा—सर्वनाश [ विज्ञान + राजनीति = सर्वनाश ] | जब विज्ञान राजनीति के साथ जुड़ेगा तो सर्वनाश के अतिरिक्त कोई समीरण नहीं हो सकता | होना यह चाहिए था कि विज्ञान + अध्यात्म तो समीकण होता-विकास । समीकरण होता-समृद्धि । समीकरण होता अमीरी । ( विज्ञान + अध्यात्म = विकास, समृद्धि ) लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया । आज का सबसे बड़ा दोष है कि विज्ञान राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है । ज्ञान बहुत खतरनाक बन जाता है जब वह राज्यसत्ता के चंगुल में फंस जाता है । शिक्षा और विज्ञान इन दोनों पर राज्यसत्ता का कोई अंकुश नहीं होना चाहिए, किन्तु आज सारी की सारी राज्यसत्ता उस पर अपना अधिकार जमाए हुए है । राज्यसत्ता के साथ शिक्षा जुड़ेगी और राज्यसत्ता के साथ वैज्ञानिक उपलब्धियां जुड़ेंगी तो फिर आणविक अस्त्रों के निर्माण के सिवाय और कोई कल्पना नहीं की जा सकती । ___आचार्य विनोबा भावे ने इस पर बहुत बल दिया था कि शिक्षा पर सरकार का अधिकार नहीं होना चाहिए । उसका स्वतंत्र अस्तित्व होना चाहिए | पर दुर्भाग्यवश आज शिक्षा और शिक्षक—सभी एक मंत्री की सिफारिश की टोह में रहते हैं । अपना निजी कोई अस्तित्व नहीं है । कारण
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