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________________ व्यक्ति और विश्व-शांति / २१७ आज का संघर्ष, आज का युद्ध बाजार का युद्ध है | आज का युद्ध विचार का युद्ध है । यानी बाजार पर अधिकार और विचार पर अधिकार—ये दोनों बातें सारे युद्ध और संघर्ष को जन्म दे रही हैं । प्रत्येक राष्ट्र चाहता है कि विश्व के बाजार पर हमारा अधिकार हो । कहीं अमेरिका और जापान की होड़ होती है, कहीं अमेरिका और जर्मनी की होड़ होती है। होड़ चल रही है बाजार पर अधिकार पाने की । कुछ राष्ट्र चाहते हैं, सभी राष्ट्रों में साम्यवाद फैले । उनका लक्ष्य संसार में साम्यवाद फैलाना है । तो यह विचार का संघर्ष और बाजार का संघर्ष, विचार और बाजार पर अधिकार पाने के लिए अणु का निर्माण—इस स्थिति ने पूरी मनुष्य जाति के सामने एक प्रश्न उपस्थित कर दिया कि विश्व-शांति पर चिंतन किया जाए । पुराने जमाने में भी लड़ाइयां चलती थीं । उस समय भी उत्तेजना, आवेग और लिप्साएं थीं । कोई नयी बात नहीं । आज ही हुआ हो ऐसा नहीं है । मनुष्य की सारी प्रकृतियां, ये सारी आदतें अतीत में भी चलती थीं, आज भी चलती हैं । पुराने जमाने में तो आदमी बहुत जल्दी गरमा जाता था और तलवार बहुत जल्दी निकल जाती थी, बात-बात में तलवार निकल जाती थी । भाई-भाई के ऊपर तलवार निकल जाती थी । पर विश्व पर अधिक असर नहीं होता था । छोटे-मोटे सामंत लड़ लेते, राजा लड़ लेते तो सौ-पचास मील के क्षेत्र में थोड़ा उसका असर होता । उससे सारा विश्व प्रभावित नहीं होता था, किन्तु आज विज्ञान के द्वारा इतने त्वरित गति के उपकरण और इतने त्वरित गति के वाहन निर्मित कर दिए गए हैं कि एक छोटी-सी घटना को सारा संसार अनुभव कर लेता है और उससे प्रभावित हो जाता है । पुराने जमाने में स्थानीय शान्ति का महत्त्व था, पर आज स्थानीय शान्ति का महत्त्व नहीं रहा । आज विश्व-शान्ति का महत्त्व हमारे सामने रह गया । यह बड़ी समस्या है | आज कहीं किसी भी व्यक्ति को थोड़ी उत्तेजना, थोड़ा आवेग आ जाए, थोड़ा पागलपन आ जाए तो क्या हो सकता है, कल्पना नहीं की जा सकती । एक के पागलपन से सारा भस्मसात् हो सकता है । उत्तेजना आती है, गर्म हो जाता है, ठंडा नही रहता, भान भी नहीं रहता । पति और पत्नी दोनों का योग होता है । पत्नी बहुत उत्तेजित, बहुत तेज । पति बेचारा बहुत शान्त । उल्टा योग मिल गया । जब-जब पति घर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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