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व्यक्ति और विश्व-शांति
हमारे सामने सबसे छोटी इकाई है व्यक्ति और बृहत्तम इकाई है विश्व । व्यक्ति
और विश्व-ये दो छोर पर दो बातें हैं । किन्तु दोनों में अन्तर-संबंध है । दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं । व्यक्ति से भिन्न विश्व नहीं और विश्व से भिन्न व्यक्ति नहीं । व्यक्ति और विश्व दोनों एक संदर्भ में भी देखे जा सकते हैं। व्यक्ति की समस्याओं को छोड़कर विश्व की समस्याओं पर विचार नहीं किया जा सकता और विश्व की समस्याओं को छोड़कर व्यक्ति की समस्याओं पर विचार नहीं किया जा सकता | दोनों पर एक साथ विचार करना संभव है। यह बहुत सुन्दर सूत्र है कि-'यथा विश्वे तथा ब्रह्माण्डे'----जो विश्व में है वही ब्रह्माण्ड में है, विश्व और ब्रह्माण्ड, व्यक्ति और समष्टि, इसको सर्वथा बांटा नहीं जा सकता।
प्रश्न है विश्व-शांति का | हम इस प्रश्न पर चिन्तन नहीं करते | हमारा कोई चिन्तन नहीं है । बड़ा आश्चर्य है, चिन्तन होना चाहिए । हिन्दुस्तान में ऐसी मनोवृत्ति बन गई कि व्यक्तिवादी चिन्तन ज्यादा चलता है, समष्टिवादी चिन्तन कम चलता है । विश्व-शांति पर आज प्रत्येक राष्ट्र में ऊहापोह और चिंतन चल रहा है। यहां बहुत कम चल रहा है जब कि यहां ज्यादा चलना चाहिए । जबकि यहां अहिंसा है, अध्यात्म है तो चिन्तन करना और ज्यादा जरूरी है । मार्गदर्शन मिल सकता है, एक प्रकाश मिल सकता है, किन्तु पता नहीं क्यों हम विश्व के संदर्भ में कुछ सोचना नहीं चाहते । निराशा हो सकती है कि हम क्या कर पाएंगे? हमारे पास कौन-सी शक्ति है ? प्रश्न कर पाने का नहीं है, नियन्त्रण शक्ति का नहीं है, प्रश्न है मानवीय भावना का, चेतना के जागरण का । अगर हमारी भावना उदात्त है, हमारी चेतना जागृत है तो
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