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________________ शक्ति-संवर्धन का माध्यम: अणुव्रत / २११ इस अवस्था में खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करता हूं तो आने वाली पीढ़ी बैठे-बैठे तो करेगी और कभी संकल्पशक्ति को विकसित करने का प्रयत्न तो करेगी । अणुव्रत सुविधावादी मनोवृत्ति के प्रति एक विद्रोह है । आदमी की मनोवृत्ति सुविधावादी हो, यह भिन्न बात है। आदमी को श्रम से नहीं कतराना चाहिए | कठिनाइयों के सामने उसे घुटने नहीं टिकाने चाहिए । वह सहिष्णु बने, घबराए नहीं । यदि यह शक्ति जागती है तो दुनिया की कोई भी ताकत T उसे परास्त नहीं कर सकती । जिस समाज के लोग श्रम से कतराने लग जाते हैं, श्रम को नीचा समझने लग जाते हैं, असहिष्णु बन जाते हैं, कष्टों से घबरा जाते हैं, वे स्वयं परास्त हो जाते हैं, मर जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं । व्रतों का जीवन संयम का जीवन है, कठोरता का जीवन है, सहिष्णुता का जीवन है, त्याग का जीवन है। इससे संकल्पशक्ति बढ़ती है। जिस व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की संकल्पशक्ति दृढ़ होती है, उसे दुनिया में कोई नहीं जीत. सकता । वह अनेक बन जाता है । जिस व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की संकल्पशक्ति कमजोर हो जाती है, उसको पराजित करने के लिए दूसरे व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की आवश्यकता नहीं होती, वह स्वयं नष्ट हो जाता है । हिब्रू सम्राट् का सेनापति उदास बैठा था । पत्नी ने देखा । उसने पूछाइतने उदास क्यों ? कभी आपको इस प्रकार मुंह लटकाए बैठे नहीं देखा । आज क्या बात है ? उसने कहा- बहुत बुरा हो रहा है । युद्धक्षेत्र में मेरी सेना हार रही है । शत्रुसेना जीत रही है । यही मेरी उदासी का कारण है । पत्नी ने कहा- मैंने तो और ही कुछ सुना है। बहुत बुरा समाचार है | लोग कहते हैं कि सेनापति का मनः संकल्प टूट गया है । अब उनमें संकल्पशक्ति नहीं रही है । यह सबसे बुरा हुआ है। इसे सुनकर मैं भी व्यथित हूं । सेनापतिं सुना। उसका आहत पराक्रम जाग उठा । मर्म पर तीर लगा। वह रणक्षेत्र में गया। सैनिकों का साहस बढ़ाया । इतनी वीरता से लड़ा कि पराजय जय में बदल गई । भागते सैनिकों के पैर जम गए । ने संकल्प टूटता है तो सब कुछ टूट जाता है । संकल्प बल मजबूत है तो सब कुछ दृढ़ हो जाता है । हम अणुव्रतों का मूल्यांकन करें - इस दृष्टि से नहीं कि यह केवल व्रतों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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