________________
२१० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
सावधान रहना, जमाना बड़ा खराब है । आज भी यही शब्द सुनने को मिलता है और आगे भी यही ध्वनि मिल सकती है।
मनुष्य की शाश्वत वृत्तियां कभी नहीं बदलतीं। पर हर युग में परिवर्तन की बात सोची जाती रही है और अनेक उपायों को खोजा जाता रहा है । इसी श्रृंखला में आज यह अणुव्रत आन्दोलन प्रस्तुत हुआ है । आदमी को बदलना है | परिस्थितियों और युग को बहाना बनाकर परिवर्तन से मुंह नहीं मोड़ना है । बदलने का प्रयत्न करना है । हमारा काम है प्रयत्न करना और कांटों को बुहारकर मार्ग को साफ करना । यदि रेगिस्तान का आदमी यह सोचे कि यहां तो रेत आती ही रहती है, आंधियां चलती ही रहती हैं, मैं क्यों रेत को साफ करूं, क्यों झाडूं दूं, तो सोचें क्या दशा होगी । वह धूलमय बन जाएगा | पर आदमी प्रयत्न में विश्वास करता है । वह प्रयत्न कभी नहीं छोड़ता । जितनी बार रेत आती है, आंधियां आती हैं, वह बुहारता है, साफसफाई करता है । ऐसा कभी नहीं हो सकता कि रेत आए ही नहीं, आंधियां चलें ही नहीं । रेत आएगी, बुहारी लगेगी, सफाई होगी । यही वास्तविक प्रक्रिया है । दोनों बराबर चलेंगे । रेत का स्वभाव है आना, आदमी का काम है सफाई करना । संक्रमणों और परिस्थितियों से आने वाले विचलनों को इगनोर न करें। उनके साथ आंख-मिचौनी न खेलें । उनकी सफाई करें, सफाई करते जाएं, रुकें नहीं । यदि यह मानकर बैठा जाए कि बुराइयां बहुत हैं, भयंकर प्रकोप है बुराइयों का, तो आदमी उनसे भयंकर रूप में ग्रस्त होता जाएगा | आदमी आदमी ही नहीं रहेगा | सारा समाज रुग्ण बन जाएगा। हमारी दृष्टि साफ रहे कि बीमारी आए, हम उसकी चिकित्सा करें । चिकित्सा कर उसे मिटा दें। बुराई आए तो उसका प्रतिकार करें | अणुव्रत उसी दिशा का एक संकेत है कि आज जो शिथिलता का मनोभाव बन गया, स्वार्थ और सुविधावादी मनोवृत्ति विकसित हो गई, उसका प्रतिकार किया जाए। जहां सुविधावादी मनोवृत्ति पनपती है, वहां व्रतों में विचलन आता है, व्रत की भावना फिसलने लग जाती है । तेरापंथ के आद्य-प्रवर्तक खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करते थे । अवस्था सत्तर वर्ष की थी । किसी ने उन्हें सुझाया, आप बैठेबैठे प्रतिक्रमण करें | आचार्य भिक्षु ने कहा-मुझे सुविधावादी नहीं बनना है । कष्ट होता है तो भले हो । इससे मेरा संकल्प दृढ़ होता है | आज मैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org