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________________ शक्ति-संवर्धन का माध्यम : अणुव्रत / २०७ (जिस व्यक्ति में अभय की चेतना जाग जाती है, व्रत और संकल्प की चेतना का जागरण हो जाता है, उस व्यक्ति को कोई शक्ति नहीं झुका सकती। ऐसी एक नहीं, हजारों-हजारों घटनाएं भारतीय साहित्य में लिखी पड़ी हैं। प्रत्येक धर्म-परंपरा का इतिहास व्रतों का और संकल्पशक्ति के विकास का इतिहास है । ऐसी एक भी धर्म-परंपरा नहीं होती, जिसमें किसी-न-किसी रूप में व्रतों का विकास न हो या संकल्पशक्ति के विकास की प्रेरणा न हो । अमेरिका से एक व्यक्ति यहां आया । वह पहले ईसाई धर्म का अनुयायी था, फिर वह इस्लाम धर्म का अनुयायी हो गया । ध्यान की परपंरा का अध्ययन करने वह तुलसी अध्यात्म नीडम् में आया । उसके संकल्प को हमने देखा। मुसलमान रोजा करते हैं अमुक महीने में | किन्तु वह व्यक्ति प्रतिदिन रोजा करता था । वहां ज्येष्ठ में भयंकर गर्मी पड़ती थी। फिर भी वह व्यक्ति दिन में न खाना खाता और न ही पानी पीता | वह पूरे दिन व्यस्त रहता | या तो वह प्रेक्षाध्यान की चर्चाएं करता, ध्यान करता या अन्यान्य दार्शनिक तत्त्वों की चर्चा करता | हमें स्वयं को आश्चर्य होता कि बिना पानी पीए, यह भयंकर गर्मी में कैसे रह पाता है ! पर उसका संकल्प बल अटूट था । प्रत्येक धर्म में संकल्पशक्ति के विकास तथा व्रतों के विकास की प्रेरणाएं रही हैं और आज भी हैं। ____ आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन किया । उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि वर्तमान में भारतीय जनता धर्म के व्रतात्मक रूप को विस्मृत कर उपासनात्मक धर्म को अपनाए हुए है । उपासना धर्म का प्रमुख घटक बन गई । मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूं कि मैं उपासना को व्यर्थ नहीं मानता, किंतु जब नींव कमजोर होती है तब छत का और दीवारों का इतना महत्त्व नहीं रहता । उपासना छत और दीवारों का काम कर सकती है, पर नींव का काम कभी नहीं कर सकती । नींव का काम करती है व्रतशक्ति या संकल्पशक्ति । आज ऐसा लगता है कि धार्मिक जगत् में संकल्प और व्रत की शक्ति का हास हुआ है और प्रतिदिन हास होता जा रहा है । आज सुखसुविधा का भाव बढ़ रहा है। अव्रत का भाव बढ़ता जा रहा है, उपासना का मार्ग मुक्त होता जा रहा है । उपासना का मार्ग मुख्य मार्ग नहीं था, गौण मार्ग था । वह सहायक मार्ग था । हमारी उद्देश्यपूर्ति में वह सहयोगी था, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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