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________________ २०६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता इसी प्रकार एक व्यक्ति यदि यह भावना करता है कि मैं स्वस्थ हूं, मैं स्वस्थ हूं, मैं स्वस्थ हूं तो वह स्वस्थ होने लगता है। संकल्प शक्ति और भावना का विकास—यह व्रत का महत्त्वपूर्ण अंग है । व्रत का अर्थ है—अपनी संकल्प शक्ति को इतना मजबूत बना लेना कि चाहे जैसी परिस्थिति आ जाए, परिस्थिति को भले ही झुकना पड़े, अपने आपको न झुकाए । व्रत की यह आस्था है । भारतीय साहित्य में ऐसे हजारों व्यक्तियों के जीवन प्रमाणभूत हैं जिनके सामने परिस्थितियों ने घुटने टेक दिए, व्यक्तियों का बाल भी बांका नहीं हुआ । सम्राट सिकंदर विजय का अभियान पूरा कर अपने देश लौट रहा था । एक साधक के विषय में सुना और वह वहां गया । साधक अपने में मस्त था । बैठा रहा । सम्राट् ने कहा—देखो ! तुम्हारे सामने विजेता सम्राट् सिकंदर खड़ा है । साधक बोला—मुझे क्या, खड़ा होगा । सम्राट बोला-नहीं जानते तुम कि मेरे पास कितना वैभव है, कितनी सत्ता है, कितना सैन्यबल है ! 'होगा, मुझे क्या !' 'तुम मेरे साथ मेरे देश चलो । वहां तुम्हें सब सुविधाएं दूंगा।' 'मैं नहीं चल सकता ।' 'चलना होगा तुम्हें । एक सम्राट् की आज्ञा है ।' 'नहीं चलूंगा और हरगिज नहीं चलूंगा ।" 'आज्ञा का उल्लंघन करने का परिणाम होता है मौत, जानते हो तुम? नहीं देखते मेरी चमचमाती तलवार को, जिसने हजारों को मौत के घाट उतार डाला ।' ___ 'मैं तो कभी का मर चुका । मैं तो मरा हुआ ही हूं | आत्मा अमर है । उसे कोई नहीं मार सकता । मरे हुए शरीर को मारने में ही तुम समर्थ हो । मुझे इससे क्या ? सम्राट सिकंदर ने देखा, जो व्यक्ति मौत से नहीं डरता, मौत की परिस्थिति उत्पन्न कर देने पर भी जिसका एक रोम भी प्रकंपित नहीं होता, वहां सम्राट् क्या कर सकता है ! सम्राट् आगे बढ़ा और साधक के पैरों में झुक गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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