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शक्ति-संवर्धन का माध्यम : अणुव्रत / २०५ यह भावना करते और सोचते—सत्यानाश हो इस वृक्ष का, जल्दी सूखकर लूंठ बन जाए तो अच्छा है । क्यों नहीं उसमें आग लग जाती ! सब पत्ते झड़ क्यों नहीं जाते ! उनके मन में रात-दिन एक ही भावना, एक ही संकल्प ।
कुछ दिन बीते । देखते-देखते वह हरा-भरा विशाल बरगद का पेड़ सूख गया । पत्ते सूखकर झड़ गए । टहनियां टूट-टूटकर नीचे गिर पड़ीं । स्कंधमात्र रहा । वह श्रीहीन हो गया ।
' अधिकारी लोग प्रसन्न हुए । वे चीन के सम्राट के पास जाकर बोलेसम्राट् ! अब हम भारत लौटना चाहते हैं । आपकी शर्त पूरी हो गई । अब आप हमें रहस्य बताएं और हमारी यात्रा का इन्तजाम करें ।
सम्राट बोला--अभी तक रहस्य समझ में नहीं आया ? गहराई से सोचा नहीं तुमने । तुम सबने देखा कि एक महीने पहले बरगद का जो पेड़ हराभरा था, हरे पत्तों से लहलहा रहा था, आज वह सूखकर लूंठ बन गया है । इसका कारण तुम लोगों ने नहीं पकड़ा । तुम सब प्रतिदिन इसके विनाश की भावना करते थे, संकल्प करते थे। उस भावना के पमाणुओं ने इस पर असर किया और यह आज लूंठ बन गया । इसी प्रकार भारत के राजा ऐसे काम करते हैं कि प्रजा की बद्दुआ उन्हें मिलती है और हम यहां ऐसे काम करते हैं कि हमारी प्रजा हमें सदा अच्छी दुआ देती है । हम निरंतर प्रजा का हित साधने की बात सोचते हैं और इसलिए जनता की हमारे प्रति शुभभावना रहती है । इसी शुभ-भावना और अच्छी दुआ के कारण हमारे देश के राजा दीर्घायु होते हैं और बदुआ और अशुभ-भावना के कारण भारत के राजा अल्पायु होते हैं।
भावना का प्रभाव चेतन मनुष्य पर ही नहीं, अचेतन जड़ वस्तुओं पर भी होता है । संकल्प का प्रभाव अचूक होता है । प्रतिदिन आस्थापूर्वक किया जाने वाला संकल्प असंभव को सम्भव बना डालता है | आदमी जान नहीं पाता कि यह सब कैसे घटित हो गया, पर घटित होता अवश्य है । आज के मनोचिकित्सक सजेशन और आटोसजेशन का प्रयोग करते हैं और उन्हें सफलता मिलती है । यदि आदमी प्रतिदिन यह भावना करता है कि मैं बीमार हूं, बीमार हूं, बीमार हूं, तो वह बीमार न होते हुए भी बीमार हो जाएगा।
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