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२०४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
जिसका बीज - वपन करते हैं, वह जाने-अनजाने अंकुरित हो जाता है। हमारे चेतन मन में जितनी शक्ति है, उससे हजार गुनी शक्ति है अवचेतन मन में । सुप्तावस्था में अर्थात् चेतन मन की निष्क्रिय अवस्था में जो भावना हमारे भीतर प्रवेश करती है, वह हमें सम्मोहित करती है और अवचेतन मन अपने आप सक्रिय हो जाता है और वह क्रिया संपन्न हो जाती है । भावना का प्रयोग सम्मोहन का प्रयोग है ।
हम संकल्प का प्रयोग करें। संकल्प को पूरी अवस्था और आत्मविश्वास के साथ दोहराएं | हमें अनुभव होगा कि असंभव लगने वाली बात संभव बनती जा रही है ।
एक बार भारत के एक राजा ने अपने अधिकारियों को बुलाकर कहातुम चीन देश में जाओ और इस रहस्य को ज्ञात करो कि भारत के राजा अल्पायु क्यों होते हैं और चीन के राजा दीर्घायु क्यों होते हैं ? उनके आयुष्य में इतना बड़ा अन्तर क्यों है ? अधिकारी वर्ग यहां से चला, चीन पहुंचा । राजा के पास जाकर अपने आगमन का प्रयोजन बताते हुए कहा कि हमारा सम्राट् आपकी दीर्घायु का रहस्य जानना चाहते हैं, आप हमें बताएं। चीन के राजा ने कहा – बताऊंगा, पर आज नहीं, कुछ दिनों बाद । आप सब मेरे अतिथिगृह में ठहरें । उस अतिथिगृह के ठीक सामने एक बरगद का बड़ा वृक्ष है । उस वृक्ष के पत्ते जब सूख जाएंगे, एक भी पत्ता हरा नहीं रहेगा, उस दिन मैं आपको रहस्य बता दूंगा । तब तक आपको प्रतीक्षा करनी होगी । अब उस समय से पूर्व आप अपने देश नहीं जा सकेंगे ।
अधिकारियों ने सुना । वे अवाक् रह गए। उन्होंने मन-ही-मन सोचा - कहां फंस गए | बरगद का हरा-भरा वृक्ष ! इतने पत्ते ! वे कब सूखेंगे और कब हम अपने देश जाएंगे ! कब हम अपने पारिवारिकजनों से मिल पाएंगे ! काल की सीमा नहीं । असीम काल ! कैसा झंझट !
सभी अधिकारी अतिथिगृह में चले गए । उन्होंने देखा, बरगद का बहुत विशाल वृक्ष हरे-भरे पत्तों से लहलहा रहा है । वे रोज बरामदे में बैठ जाते । सबकी दृष्टि बरगद पर टिक जाती। वे सोचते, इस बरगद के पत्ते कब सूखेंगे और कब हमें यहां से मुक्ति मिलेगी। यह बरगद का वृक्ष हमारे लिए शत्रु का काम कर रहा है | जल्दी क्यों नहीं सूख जाता ! वे अधिकारी प्रतिदिन
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