________________
शक्ति-संवर्धन का माध्यम : अणुव्रत
आदमी परिवर्तन की बात दीर्घकाल से सोचता आ रहा है । वह अपने स्वभाव को बदलने के लिए लंबे समय से तत्पर है, सक्रिय है, और उस दिशा में प्रयत्न भी कर रहा है । स्वभाव को बदलने के लिए अनेक तथ्य खोजे गए । उनमें एक तथ्य है भावना का प्रयोग, संकल्प व्रत का प्रयोग । व्रत अध्यात्म जगत् की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति है | आदमी में संकल्प की शिथिलता दो कारणों से हुई है । एक कारण है चित्त की चंचलता और दूसरा कारण है इन्द्रियों का असंयम । मैं मानता हूं कि सभी व्यक्ति एकाग्र नहीं बन सकते और सबका चित्त समाहित नहीं हो सकता । चित्त की चंचलता रहती है, इन्द्रियों का असंयम भी पूरा नष्ट नहीं होता, रहता है। किन्तु इन्द्रियों पर संयम पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है और उस व्यक्ति के लिए तो नितान्त आवश्यक है जो अपना जीवन शांति और सुख से जीना चाहे | चाणक्य ने अपने राजनीतिशास्त्र में बताया है कि राजा के लिए यह अत्यन्त जरूरी है कि वह इन्द्रियों का संयम करे । यदि राजा इन्द्रिय-संयम को नहीं साधता है तो प्रजा उससे विपरीत हो जाती है और राज्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है । राजा साधु या संन्यासी नहीं है । वह विलासी है, भोगी है, फिर भी उसके लिए इन्द्रियों का संयम नितान्त आवश्यक है । जिन-जिन राजाओं ने इन्द्रियसंयम को नकारा, उनका राज्य नष्ट हुआ और वे स्वयं नष्ट हो गए । जिन राजाओं ने संयम के साथ जीवन जीया, वे सुखी रहे । उनकी प्रजा सुखी रही, राज्य में संपन्नता बढ़ी और चारों ओर खुशहाली रही ।
- भावना या संकल्पशक्ति के हास का मूल कारण है इन्द्रियों का असंयम | जब इन्द्रियां उच्छंखल होती हैं तब संकल्प का बल क्षीण हो जाता है । वह ऐसा प्रपात बनता है कि पानी नीचे की ओर ही बहता जाता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org