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नैतिकता : क्या ? कैसे ? | १९५ रहेगा | उपासना धर्म को मानने वाले शत-प्रतिशत हो सकते हैं, पर अध्यात्मधर्म में ओतप्रोत होने वाले कम ही होंगे ।
बहुत लोग यह मानते हैं कि गरीब आदमी या गरीब देश ज्यादा अनैतिक होता है । किन्तु गहराई से सोचने पर यह बहुत स्पष्ट प्रतीत होने लगता है कि गरीब आदमी जितना ईमानदार होता है उतना धनी आदमी नहीं होता। जैसे-जैसे धन बढ़ता है वैसे-वैसे बेईमानी भी बढ़ती ही जाती है । कोई गरीब यदि बेईमानी करता है, हेरा-फेरी करता है तो वह अल्प पैमाने पर होती है, किन्तु बड़ी आदमी जब बेईमानी करता है तो उसकी लपेट में अनेक व्यक्ति
आ जाते हैं। आज यदि भारत का सर्वेक्षण किया जाए तो पता चलेगा कि गरीब जितना ईमानदार है, उतना धनी ईमानदार नहीं है । एक गरीब चाय वाले के यहां तीन युवक चाय पीने आए | चाय पी और चले गए। पैसे नहीं दिए । जाते-जाते वे ट्रांजिस्टर वहीं छोड़ गए । चायवाला लगंडा था । वह उस ट्रांजिस्टर को ले उनको खोजते-खोजते स्टेशन पहुंचा । उन युवकों ने ट्रांजिस्टर लिया और चाय के पैसे नहीं चुकाए । गाड़ी चली गई । ऐसी घटनाएं, एक नहीं अनेक, प्रतिदिन घटती रहती हैं।
हमारा अनुभव है कि गरीब के साथ असदाचार का गठबंधन नहीं है। बाध्यता का प्रश्न आपवादिक होता है।
फिर प्रश्न होता है कि असदाचार और अनैतिकता का कारण क्या है ? इसके समाधान में कहा जा सकता है कि इसमें दो कारण मुख्य हैं—मौलिक मनोवृत्ति और व्यवस्था । लोभ मनुष्य की मौलिक मनोवृत्ति है । भगवान् महावीर ने बहुत वैज्ञानिक बात कही-'जहां लाहो तहा लोहो'-जैसे-जैसे लाभ बढ़ता है, लोभ भी बढ़ता जाता है । यह बहुत मूल्यवान् तथ्य है । यह न माने कि लाभ बढ़ जाने मात्र से लोभ समाप्त हो जाएगा । ईंधन अग्नि को उद्दीप्त करता ही है । ईंधन से अग्नि बुझती नहीं, प्रज्वलित होती है | आदमी एक गलत धारणा को लिये जी रहा है कि भोग भोगने से शांत होते हैं । भोगों का उपभोग शांति का मार्ग नहीं है । अभोग से भोग मिटता है। भोग से भोग कभी शांत नहीं होता | भोग भोगने से भोग की ज्वाला और अधिक उद्दीप्त होती है । जैसे जैसे लाभ बढ़ता है, लोभ भी बढ़ता जाता है । मौलिक मनोवृत्ति है लोभ | जब तक लोभ रहेगा तब तक असदाचार
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