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नैतिकता : क्या ? कैसे ? | १९३ एक जाट घी का बड़ा बर्तन भरकर शहर में आया । एक बनिए की दुकान पर गया, बोला, मुझे गहने चाहिए । घी के बदले सोने के गहने दो । बनिए ने घी देखा । बड़ा बर्तन | सस्ते में आ रहा था। उसने स्वीकार कर लिया । बनिए ने घी का घड़ा लेकर, गहने दे दिए । बनिया इसलिए प्रसन्न है कि उसने घी लेकर पीतल के गहने किसान को दे दिए | किसान इसलिए प्रसन्न हो रहा है कि उसने घी के घड़े में गोबर देकर सोने के गहने ले लिये । जब बनिए ने घी का घड़ा खाली किया तो आश्चर्यचकित रह गया कि ऊपरऊपर तो घी था और नीचे गोबर भरा था । किसान गांव के सुनार के पास गया और गहनों की जांच करवाई । सुनार बोला—गहने पीतल के हैं । ऊपर स्वर्ण का झोल चढ़ा है।
दोनों ठगे गए । किसान ने बनिए को ठगा और बनिए ने किसान को ठगा | दोनों नुकसान में रहे |
आज अनैतिकता का चक्रव्यूह चल रहा है । हर आदमी दूसरे को ठग रहा है । हर आदमी खुश हो रहा है, सिर-दर्द पैदा कर रहा है । तीन आयाम या तीन बिन्दु बहुत स्पष्ट हैं । हम अध्यात्म की बहुत चर्चा कर रहे हैं। उपासना में बहुत रस लेते हैं। इतने उपासना-स्थल हैं । प्रतिदिन और नये-नये बनते जा रहे हैं। कोई अन्त नहीं है । किन्तु मध्य का बिन्दु जो नैतिकता का है, वह उपेक्षित पड़ा है । आने वाली पीढ़ी न आध्यात्मिक बनेगी और न उपासनात्मक । धर्म के दोनों बिन्दु हम अपने ही हाथों समाप्त कर रहे हैं | यदि हमें धर्म के मूल्यों को जीवित रखना है तो वर्तमान पीढ़ी का यह उत्तरदायित्व है कि वह नैतिकता का विकास करे और इस उपेक्षित बिन्दु को उभारे । यह बिन्दु उभरना चाहिए, अन्यथा अनर्थ होगा | आदमी स्वयं धर्म के मूल को समाप्त कर रहा है । कौन कितना आध्यात्मिक है, यह गूढ़ बात है । इसका दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं होगा | कौन व्यक्ति कितनी उपासना करता है | कौन कितना समय उपासना में बिताता हैं, इसका भी दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । दूसरे पर प्रभाव इस बात का होता है कि कौन व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है । जब तक व्यावहारिक और नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना नहीं होगी तब तक धर्म हमारा सहयोग कर सके, मुझे कठिनाई लगती है । आज का ज्वलंत प्रश्न है नैतिकता । यह इसलिए ज्वलंत प्रश्न
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