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________________ नैतिकता : क्या ? कैसे ? | १९१ वह भगवत्-कृपा से पाप को नष्ट कर देना चाहता है, पर पापकारी प्रवृत्ति को छोड़ना नहीं चाहता । उपासना की यह धारणा, यह स्वरूप धर्म के लिए बहुत घातक बन गया । धर्म की इस मिश्रित धारणा के आधार पर पाश्चात्य लोगों ने भारतीय धर्म पर टिप्पणी करते हुए कहा—'भारतीय धर्म सामाजिक दायित्व नहीं सिखाता ।' ब्रिटेन के कुछ अर्थशास्त्रियों ने अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष प्रकाशित किया कि भारतीय धर्म सामाजिक चेतना को जागृत करने में अक्षम रहा है । उसमें नैतिकता की अवधारणाएं नहीं हैं, इसीलिए भारत में भ्रष्टाचार, अनैतिकता और अप्रामाणिकता अधिक है ।' मैं नहीं कहना चाहता कि उनकी यह अवधारणा या उनका यह निष्कर्ष सही है । यह गलत तथ्यों पर आधारित है । पर हमें कुछ सचाइयों को स्वीकार करना ही होगा । उन सचाइयों का आधार हमारी सैद्धान्तिकता नहीं है, व्यावहारिकता है । सभी धर्मों के सिद्धान्तों में नैतिकता पर बल दिया गया है और सदाचार को प्रथम स्थान प्राप्त है । 'आचारः प्रथमो धर्मः'-जैसा स्वर यहां गुंजित हुआ है, फिर भी व्यवहार में धर्म की कमी सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है | आदमी ने शॉर्टकट रास्ता अपना लिया है । संयम और तपस्या करना कठिन होता है । उसमें खपना पड़ता है, तपना पड़ता है, कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं । आदमी खपना नहीं चाहता, तपना नहीं चाहता । वह सीधा, आरामप्रद रास्ता चाहता है । टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर वह नहीं चलना चाहता । वह सीधा रास्ता है उपासना धर्म | इष्ट के समक्ष हाथ जोड़कर समर्पण कर दो, सब पाप समाप्त हो जायेंगे । और इससे सस्ता रास्ता धर्म का और कौनसा होगा? इसका परिणाम यह आया है कि नैतिकता से आदमी का विश्वास उठ गया है । आध्यात्मिकता से विश्वास उठ गया है । आध्यात्मिकता और नैतिकता केवल दोहराने की बात रह गयी । नैतिकता के प्रति आदमी का झुकाव नहीं रहा । एक ओर है आध्यात्मिकता, दूसरी ओर है उपासना और बीच में है नैतिकता । अकेला व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है । आध्यात्मिकता और उपासना व्यक्ति के लिए बहुत उपयोगी है । किन्तु आध्यात्मिकता और उपासना का लाभ केवल व्यक्ति को मिलता है । उसका प्रतिफल समाज में होना चाहिए । यदि वह नहीं होता है तो लगता है कि आध्यात्मिकता भी एक छलावा है, उपासना भी एक छलावा है । दोनों का परिणाम समाज में आना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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