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नैतिकता : क्या ? कैसे
प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति आस्था के सहारे जीवन चलाता है । उसकी आस्था का बिन्दु है—धर्म | आज धर्म तीन आयामों में विभक्त हो गया है । वे तीन आयाम हैं—आध्यात्मिकता, नैतिकता और उपासना । आध्यात्मिकता मूल केन्द्र है, उपासना भक्ति-संबद्ध केन्द्र है और नैतिकता समाज-संबद्ध केन्द्र है | धर्म का सर्वोपरि मूल्य है आध्यात्मिकता, प्राणी मात्र के प्रति समता । प्रत्येक आत्मा में समत्व का अनुभव करना आध्यात्मिकता है । लगभग सभी धर्मों की यह स्वीकृति है कि सब जीव एक हैं, समान हैं । या तो अन्यान्य धर्मसंप्रदाय जीवों को समान मानते हैं या एक मानते हैं । इन दो मान्यताओं में सब समा जाते हैं।
अध्यात्म में न संप्रदाय होता है, न वेश होता है, न रूप होता है और न मान्यता होती है । वह वेशातीत, रूपातीत और मान्यतातीत होता है । यही वास्तव में धर्म है । प्रत्येक प्राणी में एक-जैसा चेतना का प्रवाह है, एक-जैसी प्राणधारा है । इसकी आन्तरिक अनुभूति का नाम है आध्यात्मिकता । यह अनुभूति नयी दृष्टि का सृजन करती है और इसके आधार पर व्यक्ति सब में साम्य या एकत्व का अनुभव करता है । कबीर का पुत्र कमाल घास काटने गया | घास के प्रति तन्मय हुआ और उसे यह स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा कि जैसी प्राणधारा उसमें प्रवाहित हो रही है, वैसी ही प्राणधारा घास के कणकण में प्रवाहित है । जिसको यह अनुभव हो जाता है, वह फिर घास नहीं काट सकता । कमाल घास काटे बिना घर लौट आया । जिस व्यक्ति को इतनी गहरी अनुभूति हो जाती है, आध्यात्मिक अवबोध हो जाता है, वह सही अर्थ में धार्मिक बन जाता है । ऐसा व्यक्ति न किसी को धोखा दे सकता
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