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१८४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
आचार्य भिक्षु औत्पत्तिकी बुद्धि से सम्पन्न थे । यह बुद्धि विशुद्ध होती है । 'शुद्धा बुद्धिः किल कामधेनुः'-शुद्ध बुद्धि कामधेनु होती है । बुद्धिहीन व्यक्ति कोई काम कर नहीं सकता, करता है तो वह काम सम्यक् नहीं होता। बुद्धिमान व्यक्ति प्रत्येक समस्या का समाधान खोज लेता है | आचार्य भिक्षु ने निर्णय किया कि कोई भी आचार स्थापित करना है तो उसका बौद्धिक कारण भी प्रस्तुत करना आवश्यक है।
एक राजा था । उसे प्रधानमंत्री की आवश्यकता थी, बुद्धिमान प्रधानमंत्री की । खोज करने पर पता चला कि एक गांव में एक लड़का बुद्धिमान है | उसकी परीक्षा के लिए राजा ने तिलों से एक गाड़ी भरवाकर उस गांव में भेज दी और गांव के मुखिया से कहा कि गाड़ी में तिलों की संख्या करके बताओ । यदि संख्या नहीं बता सके तो गांव के सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा। इस आदेश से गांव के सारे लोग चिन्तित हो गए । वे एकत्रित हुए । तिलों को कैसे गिना जाए? सबका मन तिलमिला उठा । मौत सामने दीखने लगी। कुछ भी समाधान दृष्टिगत नहीं हुआ ।
गांव के उस बुद्धिमान लड़के तक बात पहुंची । वह वहां आया जहां गांव के सारे मुखिया लोग एकत्रित थे । उसने पूछकर सारी समस्या जान ली। वह बोला—आप चिंता न करें । यह कोई समस्या नहीं है । मैं इसका उत्तर दे दूंगा, उपाय बता दूंगा | उत्तर प्रेषित करने की जो अवधि निर्धारित थी, उसके अन्तर्गत एक पत्र में समस्या का समाधान लिखकर राजा के पास भेज दिया । गांववाले वहां एकत्रित हुए । राजा ने सबके समक्ष पत्र खोला । उसमें लिखा था—हमने तिलों की गणना कर ली है । आकाश में जितने तारे हैं, उतने ही तिल हैं । अब आप आकाश के तारे गिनकर तिलों की संख्या ज्ञात कर लें । हमारे पास तारों को गिनने वाले गणितज्ञ नहीं हैं। आपके राज्य में तो वे होंगे ही। अब आप उनसे तारे गिनवाकर, फिर तिलों को भी गिन लें । हमने जो कहा है, वह सच निकलेगा । राजा ने देखा, उत्तर बहुत बुद्धिमत्तापूर्वक दिया गया है । उसने उत्तर-प्रदाता लड़के को प्रधानमंत्री बना दिया ।
जहां बौद्धिक क्षमता होती है, वहां तेजस्विता आती है । आचार्य भिक्षु को पढ़ने पर लगता है कि उस महान् व्यक्ति ने कितनी गहराई में जाकर
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