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व्यक्ति और समाज / १७९
करें और मानसिक विकास करें । मन के विकास का तात्पर्य है, एकाग्रता का विकास, संकल्पशक्ति और इच्छाशक्ति का विकास | यह बौद्धिक विकास से कभी संभव नहीं है । अनेक बड़े-बड़े पंडित हैं, वैज्ञानिक और विद्वान् हैं | उनका बौद्धिक विकास शिखर को छू रहा है । पर उनमें संकल्पशक्ति और एकाग्रता का विकास नाम मात्र का भी नहीं है । वे पग-पग पर अपना संतुलन खो देते हैं और अनर्थकारी घटनाएं घटित कर लेते हैं । इसका फलित यही होता है कि केवल बौद्धिक विकास खतरे पैदा करता है । बौद्धिक विकास के साथ यदि भावनात्मक विकास होता है तो बुद्धि के खतरे टल जाते हैं। संतुलित विकास की बात बहुत महत्त्वपूर्ण और तथ्यपूर्ण है । समाज इस संतुलित विकास के आधार पर ही शालीन बन सकता है ।
इस सारी चर्चा का निष्कर्ष यह है कि ध्यान व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक है । उससे समाज लाभान्वित होता है । उसका प्रयोग व्यक्ति-व्यक्ति करता है पर प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है । ध्यान का प्रयोग व्यक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति के चरित्र के माध्यम से पूरे समाज को प्रभावित करता है | यह धारणा जैसे-जैसे स्पष्ट होगी, हम सही मूल्यांकन करने लगेंगे और समुचित प्रयोगों के पश्चात् हमारी आस्था मजबूत बन जाएगी । जब ध्यान या एकाग्रता का प्रयोग व्यक्तित्व-निर्माण का अनिवार्य अंग बन जाता है तब समाज को सुधरने में समय नहीं लगता ।
व्यक्ति और समाज का क्रम है । व्यक्ति से समाज और समाज से व्यक्ति । व्यक्ति बीज है । बीज से वृक्ष बनता है और उससे फिर बीज निष्पन्न होते हैं । दोनों का संबंध जुड़ा हुआ है । बीज को ठीक करें, अगले बीज ठीक होंगे।
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