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१७८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
४. आत्मानुशासन ५. विनम्र व्यवहार
यदि इन गुणों से युक्त व्यक्ति समाज में होते हैं तो समाज की सारी व्यवस्था बदल जाती है । जापान देश आज बहुत समृद्ध है । उसकी समृद्धि के पीछे दो तत्त्व प्रत्यक्ष हैं-आत्मानुशासन और विनम्र व्यवहार । अभी एक व्यक्ति जापान की यात्रा कर आया । उसने दोनों तथ्यों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की । उसने कहा—उन जापानियों का व्यवहार इतना नम्र है कि व्यक्ति पिघल जाता है | उनका आत्मानुशासन अनुकरणीय है । जहां इतना विनम्र व्यवहार, आत्मानुशासन और शालीनता होती है, वहां समृद्धि कैसे नहीं होगी ! समाज की प्रगति के ये पांच मुख्य आधार हैं । हमें इन गुणों का बीजारोपण विद्यार्थियों में करना चाहिए | मैं पुनः यह कहना चाहता हूं कि इन पांच गुणों का विकास बौद्धिक विकास से संभव नहीं है । बौद्धिक विकास का कार्य दूसरा है । बुद्धि से विनम्रता आए, यह संभव नहीं है, क्योंकि बुद्धि तर्क पैदा करती है । जहां तर्क होगा, वहां विनम्रता गौण हो जाएगी । बौद्धिक विकास और आत्मानुशासन का कोई तालमेल नहीं है । बौद्धिक विकास के साथ-साथ आत्मानुशासन का विकास होगा, यह मानना भ्रान्ति है | उससे अनुशासन भी नहीं आता तो फिर आत्मानुशासन की बात तो बहुत दूर रह जाती है। तर्क और अनुशासन की कोई संगति नहीं है । तर्क हर बात का खंडन करके चलेगा। उसके परिपार्श्व में ऐसा सोचा जाएगा—यह कैसे कहा ? क्यों कहा ? क्या मैं नहीं समझता ? क्या मैं बच्चा हूं ? क्या मैं चिन्तन नहीं कर सकता? यह तर्क की प्रकृति है । तर्क की और बुद्धि की प्रकृति एक नहीं है ।(हमें ज्ञानचेतना की रश्मियों की प्रकृति का विश्लेषण करना चाहिए | विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाएगा कि विनम्रता, सहिष्णुता और
आत्मानुशासन---इनकी प्रकृति है भावनात्मक । इनका विकास भावनात्मक विकास के द्वारा हो सकता है । बौद्धिक विकास के द्वारा नहीं हो सकता । बुद्धि हमारे मस्तिष्क का एक केन्द्र है । भावनात्मक प्रवृत्तियों का संबंध है ग्रन्थितंत्र से । बुद्धि का संबंध है मस्तिष्क से । दोनों का केन्द्र भिन्न है, प्रकृति भिन्न है तो हम एक के माध्यम से दूसरे का विकास कैसे कर सकेंगे? इसलिए संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए हम भावनात्मक विकास करें, बौद्धिक विकास
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