________________
१७६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
है, पूरा गांव प्रभावित होता है । एक व्यक्ति अध्यात्म-प्रधान होता है, तो परिवार, समाज और गांव उससे लाभान्वित होते हैं । हम व्यक्ति के आचारव्यवहार को व्यक्तिगत आचार-व्यवहार कहकर टाल नहीं सकते । क्योंकि प्रभाव संक्रान्त होता है और हम इस संक्रमण की दुनिया में जी रहे हैं। संक्रमणों से हम सर्वथा बच नहीं सकते । इसलिए यह दृढ़ विकल्प हमारे सामने प्रस्तुत होता है कि व्यक्ति को सुधारने का उतना ही प्रयत्न होना चाहिए जितना समाज को सुधारने का होता है । यदि हम केवल समाज को सुधारने का प्रयत्न करें और व्यक्ति - सुधार की बात को गौण कर दें तो वही बात होगी कि हम बगिया को हरी-भरी रखने के लिए फूल और पत्तों को सींचते हैं, पर जड़ में एक बूंद भी पानी नहीं डालते । क्या जड़ को सींचे बिना वृक्ष या पौधा हरा-भरा रह जाएगा ? क्या वह फूल और फल देगा ? कभी नहीं । जड़ को सींचना होगा तभी वृक्ष हरा-भरा रहेगा । फूल आएंगे, फल आएंगे और तब सब कुछ मिलेगा जो वृक्ष से मिलता है । जो जड़ को सींचता है उसके फूल अपने आप हरे-भरे रहते हैं । फूलों और पत्तों को सींचता है तो जड़ सूख जाती है । फूल मुरझा जाते हैं ।
हम समस्या की जड़ को पकड़ते हैं तो समस्या का समाधान होता है और यदि केवल फूलों और पत्तों तक ही हमारी पहुंच होती है तो समस्या सुलझती नहीं, उलझती है ।
•
व्यक्ति समाज की जड़ है। हम उसे पकड़ें और उसे स्वस्थ करने और रखने का उपक्रम करें। उसके आधार पर समाज स्वस्थ रहेगा, देश स्वस्थ होगा | यदि हम व्यक्ति को विस्मृत कर समाज को सुधारना चाहेंगे तो जड़ को सींचने के बदले फूल और पत्तों को सीचेंगे। इससे कुछ नहीं होगा । व्यक्ति का निर्माण अत्यन्त महत्त्व का निर्माण है। गांधीजी आए। वे स्वयं तपस्वी की जीवन जीते रहे । सादगी और स्वस्थ जीवन जीने का उन्होंने प्रयास किया और सफल रहे । साथ-साथ उन्होंने अनेक व्यक्तियों का निर्माण किया और उन्हें सादगीमय जीवन जीने की कला सिखाई । स्वयं गांधीजी ने और उनके द्वारा निर्मित व्यक्तियों ने जो नेतृत्व प्रदान किया, वह आज कहां है ! उसका मूल कारण है कि व्यक्ति-निर्माण की प्रक्रिया ढीली हो गयी । और नेतृत्व ऐसे व्यक्तियों के हाथों में चला गया जिनके जीवन में न तपस्या है, न साधना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org