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व्यक्ति और समाज | १७५ हमें ध्यान का प्रयोग करना जरूरी होता है । तनाव की स्थिति में लिया गया निर्णय उतना सफल नहीं होता । अंतरिक्ष यात्री को अकेले रहने का अभ्यास करना होता है । आदमी अकेला रह नहीं सकता, वह घबरा जाता है । धृति, सहिष्णुता, कष्ट सहने की क्षमता, एकान्त में रहने का अभ्यास, प्रकाश और अंधकार की स्थितिमें अविचलन-ये सारी स्थितियां अंतरिक्ष-यात्री के लिए अनिवार्य हैं । अंतरिक्ष-यात्री को इन सबका पूर्वाभ्यास कराया जाता है । जब वह इन सब में उत्तीर्ण हो जाता है तब उसे अंतरिक्ष यात्रा के योग्य माना जाता है।
यह जीवन की यात्रा अंतरिक्ष की यात्रा से भी जटिल यात्रा है । यह जीवन-संग्राम किसी भी युद्ध से कम नहीं है । हम ऐसी स्थिति में आदमी को केवल बुद्धि के भरोसे नहीं छोड़ सकते । बौद्धिक विकास से वह अपने जीवन-संग्राम में सफल हो जाएगा, यह मानना भ्रांति होगी, न्याय नहीं होगा । न व्यक्ति के साथ न्याय होगा और न समाज के साथ न्याय होगा । हमारा यह अनिवार्य चिन्तन होना चाहिए कि जीवन की डोरी को केवल बुद्धि के हाथ में न सौंपे । उसको ऐसे मजबूत हाथों में थमाएं जिनमें बुद्धि, भावना
और मन—तीनों का समुचित योग हो । ये तीनों मिल कर ही जीवन-संग्राम में विजयी हो सकते हैं; अन्यथा आदमी को पग-पग पर पराजय का सामना करना पड़ता है । इस संदर्भ में यह तथ्य निरस्त हो जाता है कि ध्यान वैयक्तिक है, सामाजिक नहीं | उससे समाज को कैसे लाभ मिल सकता है ? यह भ्रम मिट जाता है । एकाग्रता का प्रयोग, संकल्पशक्ति के विकास का प्रयोग, इच्छाशक्ति के विकास का प्रयोग, नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र को स्वस्थ रखने का प्रयोग व्यक्ति करता है किन्तु उसका पूरा लाभ समाज में संक्रान्त होता है । इस दृष्टि से यह साधना नितान्त वैयक्तिक नहीं, सामाजिक भी है | पूरा समाज इससे प्रभावित होता है। समाज का एक घटक यदि अपराधी होता है तो पूरा समाज प्रभावित होता है । और यदि एक घटक सदाचारी होता है तो उससे पूरा समाज प्रभावी होता है । यदि पड़ोसी गलत मिल जाता है, तब पता चलता है कि एक व्यक्ति का क्या प्रभाव होता है। गांव में एक उद्दण्ड व्यक्ति होता है तो सारा गांव उसके आतंक से आतंकित रहता है। एक व्यक्ति की अपराधी वृत्ति, हिंसक मनोभाव से पूरा समाज प्रभावित होता
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