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१७४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता स्वस्थ और सुन्दर है । स्वस्थ वह होता जिसका नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र स्वस्थ होता है । मैंने एक बार कविता की पंक्तियों में लिखा था
'बाहर का सौन्दर्य यहां तो अन्दर का प्रतिबिम्ब रहा है।'
बाहर का सौन्दर्य आन्तरिकता का प्रतिबिम्ब होता है । बाहर का रंगरूप कितना ही सुन्दर हो, यदि मस्तिष्क की संरचना सुन्दर नहीं है तो वह बाहर का सौन्दर्य कुछ भी काम का नहीं रहेगा । यदि हम आन्तरिक सौन्दर्य और आन्तरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं तो हमें नाड़ी-संस्थान, ग्रन्थि-संस्थान और मस्तिष्क-इन तीनों पर गहराई से विचार करना होगा । जिस व्यक्ति का मस्तिष्क और पृष्ठरज्जु स्वस्थ है, जिस व्यक्ति का ग्रन्थितंत्र स्वस्थ है, वह सही सोचता है, सही निर्णय लेता है और समाज को सही दिशा में प्रस्थित करता है । उस व्यक्ति से ही समाज उत्तरोत्तर विकास करता है।
जिस व्यक्ति का मस्तिष्क, नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र स्वस्थ नहीं है, वह व्यक्ति सही ढंग से नहीं सोच सकता । वह व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले सकता । उस व्यक्ति के गलत चिन्तन और गलत निर्णयों से समाज दिग्भ्रान्त होता है और विनष्ट हो जाता है ।
इस स्थिति में हमारे सामने एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित होता है कि हम मस्तिष्क, ग्रन्थितंत्र और नाड़ीतंत्र को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं ? एक व्यक्ति को यह कैसे सिखाया जाए कि आन्तरिक संस्थानों को स्वस्थ रखने के क्या-क्या उपाय हैं ? ज्ञानवाही और कार्यवाही तन्तुओं को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं ? इसका शिक्षण देना बौद्धिक शिक्षा से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है । निर्णय में केवल बुद्धि काम नहीं देती । प्राचीन काल में यह माना जाता था कि निर्णय करना बुद्धि का काम है, किन्तु आधुनिक खोजों ने यह स्पष्ट प्रतिपादित किया है कि निर्णय में ग्रन्थि संस्थान का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है । ग्रन्थितंत्र के स्राव जितने संतुलित और व्यवस्थित होते है, हमारा निर्णय भी उतना ही व्यवस्थित होता है | इस संदर्भ में यह स्पष्ट हो जाता है कि हम अपने आन्तरिक संस्थान को स्वस्थ करने वाली प्रक्रिया की उपेक्षा नहीं कर सकते । अनेक भारतीय सेना अधिकारी मिले । उन्होंने कहा—हमारे लिए यह अनिवार्य है कि हम तनावमुक्त क्षणों में निर्णय लें । तनावमुक्ति के लिए
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