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धर्म और समाज / १६९
धर्म से प्रभावित लोग मानते हैं—विज्ञान ने मनुष्य जाति को संहार के कगार पर पहुंचा दिया है । विज्ञान से प्रभावित लोग मानते हैं—धर्म ने मनुष्य को परंपरावादी या रूढ़िवादी बना दिया है । इस आरोप और प्रत्यारोप में सचाई नहीं है | सचाई यह है कि धर्म और विज्ञान सत्य को उपलब्ध करने की पद्धतियां हैं । धर्म का रूढ़िवाद से और विज्ञान का संहारक शस्त्रों से कोई संबंध नहीं है।
जैसे धर्म-स्थान धर्म नहीं है, वैसे ही प्रौद्योगिकी (टेक्नोलोजी) विज्ञान नहीं है । जिसका उपयोग होता है, उसका दुरुपयोग भी हो सकता है । उपयोग
और दुरुपयोग के बीच में कभी भी लक्ष्मणरेखा नहीं खींची जा सकती । दुरुपयोग धर्म का भी हो सकता है और विज्ञान का भी हो सकता है । जो धर्म सत्ता और संपत्ति के साथ जुड़ जाता है, वह घातक बन जाता है । ठीक इसी प्रकार विज्ञान भी साम्राज्यवादी मनोवृत्ति के साथ जुड़कर संहारक बन रहा है । संहार विज्ञान की प्रवृत्ति नहीं है । उसका स्वरूप नहीं है । धर्म और विज्ञान दोनों की प्रकृति है— स्थूल से सूक्ष्म की दिशा में प्रस्थान—जागतिक नियमों की खोज, सामान्यीकरण, सत्य की परिक्रमा ।
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