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________________ तथा मास्तष्क की कोशिकाओं के १६८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता प्रकाशमय ढांचा बना हुआ था । सिक्के का आभामंडल नियत था, जबकि प्राणी का आभामंडल परिवर्तनशील था। पहले मृत्यु की घोषणा हृदय की धड़कन और नाड़ी की गति बंद होने तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं के निष्क्रिय होने पर की जाती थी। अब उसकी घोषणा आभामंडल के आधार पर की जाती है । जब तक आभामंडल क्षीण नहीं होता है, प्राणी की मृत्यु नहीं होती है । इसलिए तथाकथित मृत्यु की घोषणा होने के बाद भी अनेक मनुष्य जी उठते हैं । कर्म-परमाणुओं के प्रत्येक स्कन्ध में असंख्य संस्कारों के स्पंदन अंकित होते हैं । यह विषय बुद्धिगम्य नहीं है । किन्तु क्रोमोसोम (गुणसूत्र) और जीन (संस्कार-सूत्र) की वैज्ञानिक व्याख्या के पश्चात् वह विषय अस्पष्ट नहीं रहा । प्रत्येक जीन में छह लाख आदेश अंकित माने जाते हैं । जीन और कर्म का तुलनात्मक अध्ययन बहुत ही दिलचस्प विषय है। कर्म के संक्रमण का सिद्धान्त—पूण्य को पाप के रूप में और पाप को पुण्य के रूप में बदलने की प्रक्रिया में अब सन्देह नहीं किया जा सकता। जेनेटिक इंजीनियरिंग के अनुसार जीन के परिवर्तन का सिद्धान्त मान्य हो चुका है और उसके परिवर्तन के उपाय खोजे जा रहे हैं । खनिज धातु में जीव का सिद्धान्त बहुत ही विवादास्पद रहा । किन्तु अब विज्ञान के चरण उस विवाद के समाधान की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। कुछ भूवैज्ञानिक मानते हैं कि पत्थर और पहाड़ भी बढ़ते रहते हैं । धातु पर प्रहार करने पर उसमें थकान आती है । कुछ समय बाद आराम के क्षणों में वह पूर्ववत् हो जाती है | थकान आना, आराम के क्षणों में पूर्व स्थिति में चले जाना—ये जीव के लक्षण हैं, जो खनिज धातु में भी पाए जाते है। . वनस्पति की चेतना और उसकी संवेदनशीलता चर्चा का विषय बनी हुई थी । उसमें क्रोध, अहंकार, कपट और लोभ, भय और मैथुन की प्रवृत्ति होती है । इसे स्वीकारना सहज सरल नहीं था । किन्तु वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा वनस्पति में इन सबका अस्तित्व प्रमाणित हो जाने पर अब वह विषय संदेहास्पद नहीं रहा । इस विषय में 'सीक्रेट लाइफ ऑफ प्लान्ट्स' पुस्तक पठनीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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